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कार मैन्यफैक्चरिंग कम्पनीयां टेस्ट कार में सिर्फ डैज़ल पैंट रैप का इस्तेमाल क्यों करती है।

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सड़कों पर अक्सर काले और सफेद रंग में लिपटी कारें देखी जाती हैं, जो असल में लॉन्च से पहले की टेस्टिंग कारें होती हैं। इनका उद्देश्य कार के डिज़ाइन को लॉन्च से पहले किसी से भी छिपाना होता है।

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Camouflage रैप का इस्तेमाल सबसे पहले 1900 में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सैनिकों ने अपने समुद्री जहाजों को ढकने के लिए किया था। इसका उद्देश्य जहाज के आकार और गति को छिपाना था, और यही तरीका अब कार कंपनियों द्वारा अपनाया जाता है।

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कार कंपनियां इस रैप का इस्तेमाल इसलिए करती हैं ताकि कार के डिज़ाइन के बारे में कोई जानकारी लीक न हो जाए। सफेद और काले रंग की डिजाइन कार के फिनिशिंग और किनारों को भ्रमित कर देती है, जिससे सही रूप से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।

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सफेद और काले रंग की Camouflage रैपिंग कैमरे के लिए मुश्किल होती है, क्योंकि ये रंग कैमरा से अच्छे से फोकस नहीं हो पाते। इस कारण से, चलती कार की तस्वीरें लेते वक्त, डिटेलिंग स्पष्ट नहीं आती, जो डिज़ाइन को छिपाने में मदद करती है।

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कार के डिज़ाइन को छुपाने का उद्देश्य सिर्फ मार्केटिंग नहीं, बल्कि टेस्टिंग भी होती है। कंपनी अपनी कार की परफॉर्मेंस को विभिन्न प्रकार की सड़कों पर परखती है, ताकि लॉन्च से पहले किसी भी कमी को ठीक किया जा सके।

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जब टेस्टिंग कार सड़कों पर चलती है, तो लोग फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर वायरल कर देते हैं, जिससे कंपनी को फ्री प्रमोशन मिलता है। इससे कार की डिज़ाइन को लेकर उत्सुकता और बढ़ जाती है।

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सफेद और काले रंग के Camouflage का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि ये आंखों में भ्रम उत्पन्न करते हैं और कार के डिज़ाइन की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती। यह भ्रम कार के आकार और डिटेल्स को अस्पष्ट रखता है।

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कार को टेस्टिंग के दौरान सड़कों पर उतारने से कार निर्माता कंपनियों को केवल डिज़ाइन नहीं, बल्कि उसकी परफॉर्मेंस पर भी ध्यान देने का मौका मिलता है। यह कंपनियों को टेस्टिंग और सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

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