नेवले को देखते ही क्यों घबरा जाता है कोबरा कौन जीतता है हर बार की लड़ाई
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कोबरा जैसे खतरनाक सांप भी नेवले को देखते ही भाग खड़े होते हैं। वजह साफ है—नेवले की फुर्ती और लड़ने की तकनीक ऐसी होती है कि कोबरा का ज़हर भी उस पर असर नहीं करता। यही कारण है कि नेवला अक्सर कोबरा को मात देता है।
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नेवला निंजा जैसी तेजी से हमला करता है और खुद को बड़ी चतुराई से बचाता है। बार-बार छलांग लगाकर वो सांप को थका देता है और मौके पर सीधा उसके सिर पर हमला करता है। यही रणनीति उसे सांपों का सबसे खतरनाक दुश्मन बनाती है।
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नेवले के शरीर में एक खास तरह का ग्लाइकोप्रोटीन और एसिटाइलकोलाइन रिसेप्टर्स होते हैं, जो कोबरा के विष को निष्क्रिय कर देते हैं। यही जैविक सुरक्षा उसे सांप के ज़हर से लगभग सुरक्षित बना देती है।
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करीब 3 फीट लंबा भारतीय ग्रे नेवला दुनिया की सबसे बड़ी नेवला प्रजातियों में से एक है। यह जंगलों, खेतों और रेगिस्तानों में खुद को आसानी से ढाल लेता है। उसकी साहसिकता और लड़ने की शैली उसे एक बेजोड़ शिकारी बनाती है।
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नेवला सांप का पीछा करते हुए उसके बिल तक पहुंच जाता है। अपने तेज़ और मजबूत पंजों की मदद से वो बिल खोदकर भी कोबरा को बाहर खींच लेता है और उसे खत्म कर देता है। यही कारण है कि खेतों में यह बेहद उपयोगी साबित होता है।
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भारतीय नेवले आमतौर पर स्लेटी (ग्रे) रंग का होता है, जिसकी धारियाँ काली-सफेद होती हैं। दक्षिण भारत में पाए जाने वाले नेवले गहरे रंग के होते हैं, जबकि रेगिस्तानी नेवले में लालिमा देखने को मिलती है। छोटा भारतीय नेवला हल्के जैतूनी भूरे रंग का होता है।
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किसान नेवले को प्राकृतिक रक्षक मानते हैं क्योंकि यह खेतों से चूहे और सांपों को दूर रखता है। मानसून के समय जब सांपों की संख्या बढ़ती है, तब नेवला सबसे ज्यादा मददगार साबित होता है। इसके चलते इसे भारत में संरक्षित प्रजाति का दर्जा भी मिला है।
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भारत में नेवले की 6 प्रमुख प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से चार पश्चिमी घाट में निवास करती हैं। उत्तर भारत में इंडियन ग्रे मोंगूज़ और स्मॉल इंडियन मोंगूज़ आम हैं। ये जंगलों, खेतों और मानव बस्तियों में आसानी से रहते हैं।
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