राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ जब नवादा पहुंची, तो दृश्य किसी भी चुनावी कार्यक्रम की तरह ही रोमांचक था। गाड़ियों का लंबा काफिला, भारी भीड़ और नारों की गूंज से माहौल जोश से भरा हुआ था। इसी दौरान भीड़ से एक व्यक्ति ने तेजस्वी को सीधे कहा, “प्रकाश वीर को हटाना होगा।” इस साधारण लेकिन स्पष्ट संदेश ने नेता प्रतिपक्ष के निर्णय को तुरंत प्रभावित किया। तेजस्वी यादव ने कोई शब्द नहीं बोले, बस मुस्कुराए और हाथ से इशारा किया। यह इशारा जनता और पार्टी के लिए एक सियासी संकेत बन गया।
जनता की आवाज पर फैसला
तेजस्वी यादव का यह कदम केवल टिकट कटने का मामला नहीं था, बल्कि जनता की प्राथमिकता को सबसे ऊपर रखने का संदेश था। उन्होंने यह दिखाया कि अब पार्टी में केवल लॉबिंग या बड़े नेताओं से नजदीकी के आधार पर निर्णय नहीं होगा। इस घटना ने साफ किया कि जनता की आवाज अब आरजेडी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। तेजस्वी ने यह फैसला खुले आम और कैमरे के सामने लिया, जिससे पार्टी के सभी नेता और कार्यकर्ता सीधे तौर पर संदेश समझ सकें।
प्रकाश वीर के खिलाफ बढ़ती नाराजगी
रजौली के मौजूदा आरजेडी विधायक प्रकाश वीर पर यह कार्रवाई अचानक नहीं हुई थी। स्थानीय लोगों का आरोप था कि विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे थे और जनता से सीधे संपर्क नहीं बनाए रखा। वे अपने टिकट को केवल नेतृत्व के भरोसे पर निर्भर मान रहे थे, लेकिन जनता के सीधे फीडबैक ने उनके भ्रम को तोड़ दिया। प्रकाश वीर का करीबी राजबल्लभ यादव था, जिससे यह घटना केवल एक विधायक का मामला नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर एक शक्तिशाली गुट पर सीधा प्रभाव डालने वाला कदम बन गया।
पार्टी में खौफ और बदलाव
प्रकाश वीर के टिकट कटने की खबर पार्टी के अन्य विधायकों में तेजी से फैल गई। इससे कई विधायकों में खौफ का माहौल बन गया और उन्होंने अपने खास लोगों को तेजस्वी के आस-पास रखकर अपने पद सुरक्षित करने की कोशिश शुरू कर दी। अब पार्टी में विधायकों के टिकट केवल नेतृत्व के प्रति वफादारी पर निर्भर नहीं होंगे, बल्कि सीधे जनता की प्रतिक्रिया और प्रदर्शन भी मायने रखेगा।
तेजस्वी यादव की नई रणनीति
प्रकाश वीर के टिकट कटने के 24 घंटे बाद ही वह प्रधानमंत्री मोदी की सभा में नजर आए और बाद में जेडीयू में शामिल हो गए। यह घटना साफ संदेश है कि अब तेजस्वी यादव के फैसलों को प्रभावित करना आसान नहीं है। वे अब न सिर्फ वफादारी, बल्कि जमीनी काम को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में यह रणनीति उनकी ‘एंटी-इनकंबेंसी’ नीति का ट्रेलर है।





