भोपाल, डेस्क रिपोर्ट| मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के उम्मीदवारों के चयन (Candidate Selection In Madhya Pradesh Assembly By-election) को लेकर भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) और कांग्रेस (Congress) में द्वंद्व (Duality) जारी है। दोनों ही राजनीतिक दल (Both Political Parties) अब तक सभी उम्मीदवारों का ऐलान नहीं कर पाए हैं। राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना प्रस्तावित है। पिछले विधानसभा चुनाव में इन स्थानों में से 27 स्थानों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, तो एक स्थान पर भाजपा का उम्मीदवार जीता था। इस तरह इन 28 स्थानों पर विधानसभा के उपचुनाव होना है।
उपचुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से दो सूचियां जारी की जा चुकी हैं। इनमें कुल 24 उम्मीदवारों के नाम थे। चार स्थानों पर उम्मीदवारों के नामों का फैसला नहीं हो पाया है। पार्टी में इसको लेकर खींचतान भी चल रही है। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने आधिकारिक तौर पर अभी तक एक भी उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है। वैसे, पार्टी की ओर से यही कहा जा रहा है कि 25 वो नेता पार्टी के उम्मीदवार होंगे जो कांग्रेस छोड़कर आए हैं, उनका चुनाव लड़ना तय है। शेष तीन स्थानों को लेकर भाजपा में भी आम राय नहीं बन पा रही है।
कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अंदरूनी खींचतान के दौर से गुजर रहे हैं। कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, पार्टी के भीतर सबसे ज्यादा खींचतान भिंड के मेहगांव विधानसभा क्षेत्र को लेकर है, पार्टी में यहां के उम्मीदवार के नाम पर अलग-अलग राय है और उसी के चलते सहमति नहीं बन पा रही है। इसी तरह भाजपा में आगर-मालवा, जौरा और ब्यावरा को लेकर आम सहमति नहीं बन पा रही है। ब्यावरा में तो असंतोष का आलम यह है कि कई कार्यकर्ता पार्टी के प्रदेश दफ्तर में आकर विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
उम्मीदवार चयन में हो रही देरी को लेकर दोनों ही दलों के नेता एक ही तर्क दे रहे हैं कि उम्मीदवार आम राय से तय किए जा रहे हैं, यही कारण है कि नामों का ऐलान में कुछ देरी हो रही है। भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस, दोनों ही दलों के लिए उम्मीदवारों के नामों का चयन आसान नहीं है। भाजपा को जहां कांग्रेस छोड़कर आए बहुसंख्यक नेताओं को उम्मीदवार बनाने की चुनौती है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के लिए भी नए चेहरों को मैदान में लाना आसान नहीं हो रहा है। दोनों ही दल दूसरे दल से आए नेताओं को उम्मीदवार बना रहे हैं और यही कारण है कि इन राजनीतिक दलों में खींचतान थमने का नाम नहीं ले रही है।