भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) में अप्रैल 2016 से पदोन्नति (Promotion) पर रोक लगाई गई है। जिसके बाद मंत्रालय सहित प्रदेश के तमाम कार्यालयों में 60% से अधिक वरिष्ठ पद खाली पड़े हुए हैं। प्रभारी अधिकारी कर्मचारियों को प्रभार देकर इन विभागों में काम चलाया जा रहा है। हालांकि इसका असर सरकार की कार्य संस्कृति पर भी पड़ रहा है। वहीं सरकार के कार्य की गति में भी समुचित ढंग से तेजी नहीं आ रही है। जिसके बाद दो दर्जन से ज्यादा कर्मचारी राज्य सरकार (state government) के खिलाफ हाईकोर्ट (Highcourt) पहुंच गए हैं।
सहकारिता सहित आधा दर्जन विभागों के कर्मचारी ने हाईकोर्ट की जबलपुर और ग्वालियर खंडपीठ (Jabalpur and Gwalior Bench) में याचिका दायर की है। माना जा रहा है कि नवंबर में इस पर सुनवाई की जा सकती है। कर्मचारी द्वारा याचिका दायर कर कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति को लेकर जो निर्देश दिए थे वह निर्देशित आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों पर लागू होते हैं, सामान्य वर्ग के कर्मचारियों पर नहीं।
वही सपाक्स संस्था के अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि राज्य सरकार सुनवाई नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि हमने कई बार सशर्त पदोन्नति की मांग की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। जिसके बाद कोर्ट में केस दर्ज कराया गया है। वही अगले महीने इसकी सुनवाई हो सकती है।
दरअसल मध्य प्रदेश में मई 2016 से प्रमुख विभागों की पदोन्नति पर रोक लगी हुई है। हाईकोर्ट ने अप्रैल 2016 में एक दर्जन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश लोकसेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002 खारिज कर दिया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को यथास्थिति रखने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद से राज्य में पदोन्नति पर रोक लगी हुई है। वहीं हर विभाग में 20 से 60 फीसद वरिष्ठ पद खाली पड़े हुए हैं। मूलतः नगरीय प्रशासन, मुख्य तकनीकी परीक्षक, पशुपालन, सहकारिता, पीएचई (PHE) मे भी 20 से 60 फीसद वरिष्ठ पद खाली पड़े हैं। जिन्हें प्रभार पर देकर चलाया जा रहा है।
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वहीं मध्यप्रदेश मंत्रालय ने सेवा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि कई बार सरकार से मांग की गई कि पदोन्नति प्रारंभ की जाए। बिना पदोन्नति के कई कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए हैं। दावेदारों की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है। वही सुधीर नायक का कहना है कि सरकार को इस विषय में जल्द फैसला लेना चाहिए। वेतनमान के मुताबिक यदि पदनाम दे दिया जाए तो पदोन्नति की समस्या हल हो सकती हैं। ज्ञात हो कि प्रदेश में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा बढ़ने की वजह से 2 साल से अधिकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति नहीं हुई है। बावजूद इसके वरिष्ठ पदों पर पदोन्नति ना मिलने की वजह से प्रमुख विभागों के वरिष्ठ पद खाली पड़े हैं।
बता दे कि वर्ष 2018 में कर्मचारियों की लगातार हो रही कमी को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (chiefminister shivraj singh chauhan) ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 60 से बढ़ाकर 62 करती थी। वही मई 2016 से अब तक करीब 65000 अधिकारी- कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जिनमें 20 फीसद प्रथम और द्वितीय श्रेणी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वही संगठनों की लगातार कोशिश के बाद भी राज्य सरकार द्वारा पदोन्नति शुरू नहीं की गई है।