बिहार में लगती है नावों की मंडी, नेपाल सहित देश के कोने-कोने से आते है खरीददार

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नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। वैसे तो आपने बहुत तरह की मंडियों के बारे में सुना होगा, जैसे सब्जीमंडी, अनाज मंडी, गुड़मंडी, आदि, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में एक ऐसी जगह भी है, जहां नावों की मंडी लगती है। भारत के कोने-कोने सहित पड़ोसी देश नेपाल से भी यहां खरीददार आते है।

ये मंडी कहीं और नहीं बल्कि मानसून के मौसम में बिहार के बेगूसराय में लगती है। कहा जाता है कि यू तो देश में कई जगह नांव बनाई जाती है, लेकिन लेकिन गढ़पुरा की नाव काफी मजबूत और टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण मानी जाती है। मानसून के मौसम में यह मंडी ग्राहकों से गुलजार हो जाती है।

जानकारी के मुताबिक, अप्रैल, मई महीने से नाव बनाने का काम शुरू हो जाता है। दरअसल, नावों के भी कई प्रकार है जैसे पतामी, एक पटिया, तीन पटिया छोटी और बड़ी नाव, आदि। इस काम को करने वाले ज्यादातर बढ़ई समाज के लोग है। नाव बनाने के लिए मार्च के बाद से ऑर्डर मिलने लगता है, जहां इसके बाद यहां 24 घंटे नाव बनाने का काम किया जाता है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि यहां सभी महीनों में नाव का धंधा चलता है, लेकिन जून-जुलाई से नाव की बिक्री बढ़ जाती है। एक सीजन में दो से ढाई हजार नावें बिकती हैं।

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मंडी में आकर अधिकांश लोग जामुन की लकड़ी से बानी नाव पसंद करते हैं। ऐसा मानना है कि जामुन की लकड़ी से बनाई गई नाव काफी टिकाऊ होती है, यह पानी में यह जल्दी से खराब भी नहीं होती।

इतनी होती है कीमत

छोटी नाव की कीमत नौ हजार रुपये से शुरू होती है, जबकि एक पटिया नाव की कीमत करीब 15 हजार रुपये है। पतामी नाव की कीमत 20 हजार रुपये है और 13 हाथ की पतामी नाव 24 से 25 हजार रुपये होती है। इस दौरान नाव बनाने में तीन तरह की कांटी का प्रयोग किया जाता है।

यहां से खरीदकर बाहर भी नाव बेचते है लोग

गढ़पुरा में निर्मित नावें गुणवत्ता वाली मानी जाती हैं। यहां नाव बेचने से पहले उसका पूरा ट्रायल किया जाता है। कुछ लोग यहां से नाव खरीदकर बाढ़ प्रभावित इलाकों में नाव का कारोबार करते हैं।


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Manuj Bhardwaj

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