नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। देश की आम जनता को महंगाई ने एक और बड़ा झटका दिया है। पिछले दिनों खुदरा महंगाई आठ साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई और अब थोक मुद्रास्फीति (WPI Inflation) में भी तेज वृद्धि देखने को मिली है। सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में थोक महंगाई दर 15.08 फीसदी के उच्च स्तर पर पहुंच गई। इससे बीते महीने मार्च में यह 14.55 फीसदी पर थी। थोक महंगाई का यह आंकड़ा बीते नौ सालों में सबसे बड़ा है। तो वहीं दूसरी तरफ मंगलवार को रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले सब कम देखी गई। साथ ही रुपए में आज 28 पैसे की गिरावट के रुपये की कीमत 77.46 रुपये तक देखी गई। हालांकि शुक्रवार को रुपये में उछाल देखा गया था।
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आपको बता दें कि खाने-पीने के सामान, ईंधन और बिजली के दाम में इजाफा होने से थोक महंगाई लगातार 13वें महीने डबल डिजिट में बनी हुई है। वहीं सरकार की तमाम कोशिशें बढ़ती महंगाई को काबू करने में नाकाम साबित हो रही हैं। आइए जानते है।
थोक मूल्य सूचकांक | फरवरी | मार्च | अप्रैल |
आंकड़े | 13.11% | 14.55% | 15.08% |
ईधन और ऊर्जा पर बढ़ती महंगाई दर
वस्तुऐं | अप्रैल | मार्च |
खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर | 8.35% | 8.06% |
फ्यूल और पावर की महंगाई दर | 38.66% | 34.52% |
मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की महंगाई दर | 10.85% | 10.71% |
बता दें कि विनिर्मित उत्पादों और तिलहन में यह क्रमशः 10.85 प्रतिशत और 16.10 प्रतिशत थी। कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की मुद्रास्फीति अप्रैल में 69.07 प्रतिशत थी।
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गौरतलब है कि भारत में महंगाई को दो तरह से मापा जाता है। पहला है रिटेल यानी खुदरा और दूसरा थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, दूसरी है थोक महंगाई, जिसे होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) कहते है इसका अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। ये कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं। गौरतलब है कि इन दोनों तरह की महंगाई को मापने के लिए अलग-अलग आइटम को शामिल किया जाता है।