बस्तर शांति समिति ने सभी सांसदों से इंडिया ब्लॉक के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी का समर्थन न करने की अपील की है। समिति का कहना है कि 2011 में रेड्डी द्वारा सलवा जुडूम आंदोलन को खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बस्तर में नक्सली हिंसा को बढ़ावा दिया। रेड्डी, जो पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज हैं, ने जस्टिस एस.एस. निज्जर के साथ मिलकर यह फैसला सुनाया था, जिसे समिति ने बस्तर के लिए ‘काला युग’ करार दिया।
समिति के सदस्य कवाडे ने बताया कि बस्तर में नक्सलवाद की हिंसा से त्रस्त स्थानीय लोगों ने सलवा जुडूम आंदोलन शुरू किया था, जिसने नक्सलियों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया था। लेकिन 2011 में दिल्ली में कुछ नक्सल समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर तत्कालीन जज सुदर्शन रेड्डी ने सलवा जुडूम को गैरकानूनी घोषित कर इसे बंद करने का आदेश दिया। कवाडे ने कहा कि समिति की एकमात्र मांग है कि सांसद ऐसे व्यक्ति का समर्थन न करें, जिसके फैसले ने बस्तर में हिंसा को बढ़ाया।
रेड्डी के फैसले बस्तर के लोगों के लिए हानिकारक
नक्सली हिंसा के पीड़ित केदारनाथ कश्यप ने अपने भाई की हत्या की दर्दनाक यादें साझा करते हुए बताया कि सलवा जुडूम के जरिए आदिवासी नक्सलवाद से लड़ रहे थे। 2011 के फैसले के बाद 2014 में एक नक्सली हमले में उनके भाई की हत्या कर दी गई और उन्हें भी गोली लगी, जिससे आज भी उन्हें चलने में दिक्कत होती है। कश्यप ने रेड्डी के फैसले को बस्तर के लोगों के लिए हानिकारक बताया। यह फैसला उस समय आया था, जब छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी।
नक्सलवाद को पुनर्जनन देने का कारण
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इंडिया ब्लॉक पर निशाना साधते हुए कहा कि रेड्डी का सलवा जुडूम पर फैसला नक्सलवाद को पुनर्जनन देने का कारण बना। उन्होंने राहुल गांधी से इस उम्मीदवारी पर स्पष्टीकरण मांगा, दावा करते हुए कि रेड्डी की वामपंथी विचारधारा ने नक्सलियों को संरक्षण दिया। 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में रेड्डी का मुकाबला एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन से है। बस्तर शांति समिति की यह अपील चुनाव से पहले राजनीतिक बहस को और गर्म कर सकती है।





