रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की अध्यक्षता में गुरुवार को मंत्रीपरिषद की बैठक हुई। इस बैठक में वाणिज्यिक कर (पंजीयन) विभाग के एक अहम प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई। यह प्रस्ताव ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि के बाजार मूल्य निर्धारण से जुड़ा है, जिसका मकसद किसानों और भू-अर्जन से प्रभावित हितग्राहियों को न्याय देना और राजस्व मामलों की विसंगतियों को दूर करना है।
क्या है नई व्यवस्था?
अब ग्रामीण कृषि भूमि का बाजार मूल्य 500 वर्गमीटर की दर से नहीं, बल्कि पूरे रकबे की हेक्टेयर दर से तय किया जाएगा। यानी छोटे भूखंडों की दर हटाकर बड़े भूखंडों के हिसाब से मूल्यांकन होगा। इससे मुआवजे की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और न्यायपूर्ण होगी।
अनियमितताओं पर लगेगा अंकुश
भारतमाला परियोजना और बिलासपुर के अरपा-भैंसाझार इलाके में सामने आई जमीन से जुड़ी अनियमितताओं को देखते हुए इस व्यवस्था को काफी अहम माना जा रहा है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचित भूमि की दर ढाई गुना करने का प्रावधान भी अब हटा दिया गया है। शहरी सीमा से लगे ग्रामों और निवेश क्षेत्रों की भूमि के लिए अब वर्गमीटर में दरें तय होंगी। इससे वहां के भू-स्वामियों को भी लाभ मिलेगा और बाजार में पारदर्शिता आएगी।
ऐतिहासिक कदम
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस फैसले को “दूरदर्शी और ऐतिहासिक” बताया। उन्होंने कहा कि इससे किसानों को पारदर्शी और न्यायसंगत मुआवजा मिलेगा, साथ ही विकास परियोजनाओं को भी रफ्तार मिलेगी। उन्होंने कहा,
“गाइडलाइन दरों की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाकर हम किसानों को न्याय दिलाएंगे और राज्य की विकास परियोजनाओं की गति भी तेज करेंगे।”
क्या होगा असर?
- भूमि अधिग्रहण से जुड़ी विवादित मामलों में कमी आएगी।
- किसानों को ज्यादा और सही मुआवजा मिलेगा।
- राज्य की विकास परियोजनाओं को गति मिलेगी।
- भू-मूल्य निर्धारण प्रणाली अधिक पारदर्शी और विवाद-मुक्त बनेगी।
इस फैसले को छत्तीसगढ़ सरकार की नीति-निर्माण की दिशा में एक बड़ा और सकारात्मक बदलाव माना जा रहा है।





