छत्तीसगढ़ में जल्द ‘हुक्का बाहर’, जुर्माने के साथ-साथ सजा का भी है प्रावधान

Gaurav Sharma
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रायपुर डेस्क रिपोर्ट। छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार सोमवार से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के दौरान हुक्का बार पर प्रतिबंध के लिए विधेयक ला सकती है। यह प्रस्ताव पहले ही कैबिनेट द्वारा मंजूर किया जा चुका है। सरकार इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के पक्ष में है।

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हुक्का बार पर रोक को लेकर भूपेश बघेल सरकार के तेवर सख्त हैं। मुख्यमंत्री साफ तौर पर कह चुके हैं कि किसी भी स्थिति में नशाखोरी की प्रवृत्ति को आगे नहीं बढ़ने दिया जाएगा। दरअसल छत्तीसगढ़ में जिस तरह से हुक्का बार प्रवृत्ति पनप रही है, उससे नौजवान पीढ़ी लगातार इसके चंगुल में फंसती जा रही है। हालांकि जुवेनाइल जस्टिस के तहत इन मामलों में कार्यवाही होती है जिसमें किशोरों को नशा कराने पर सख्त सजा का प्रावधान है। लेकिन अब हुक्का बार संचालक घर तक हुक्का पहुंचाने की सुविधा मुहैया करा रहे हैं। सरकार ने इन पर प्रतिबंध लगाया था लेकिन छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने प्रतिबंध के आदेश पर रोक लगा दी। दरअसल इसे बंद करने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बनने के कारण यह स्थिति हुई थी।

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अब भूपेश बघेल सरकार हुक्का बार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का कानून ले आई है जिसके तहत अब हुक्का बार चलाने पर न केवल चलाने वाले बल्कि बैठ कर हुक्का पीने वालों को भी सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून मे अधिकतम 5 साल की सजा और 50000 रू जुर्माने का प्रावधान है। कैबिनेट में पास होने के बाद यह विधेयक अब विधानसभा में पेश होगा और विधानसभा में पारित होने के साथ ही इसे लागू कर दिया जाएगा। राज्य में नशाखोरी रोकने की दिशा में भूपेश सरकार का यह बड़ा कदम माना जा रहा है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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