दरअसल अपने पिता माधवराव सिंधिया (madhavrao cindia) के नाम पर बनी माधव नेशनल पार्क में बाघों के पुर्नस्थापन की प्रक्रिया पूरी हो सकती है। दरअसल सिंधिया द्वारा इसके लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। इसी बीच माधव नेशनल पार्क में बाघों को वापस बसाने के लिए जरूरी कदम उठाने का आग्रह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से बीते दिनों किया था।
हालांकि बाघों को माधव नेशनल पार्क में बसाने के लिए इस नेशनल पार्क को बाघों के उपयुक्त बनाना होगा। जगह-जगह घास के मैदान सहित पानी के लिए तालाब का निर्माण करना होगा। इसके साथ ही शाकाहारी वन्य जीवो को लाकर यहां बसना होगा। ताकि बाघों को शिकार के लिए भटकना न पड़े। हालांकि पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव (bhupendra yadav) ने इस मामले में तेजी से कार्य करने के निर्देश दिए।
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इससे पहले नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दक्षिण अफ्रीका से चीतों के बहुप्रतीक्षित स्थानांतरण पर चर्चा करने के लिए पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से मुलाकात की थी और मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के पुन: परिचय के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
वहीँ ज्योतिरादित्य के इस प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अधिकारियों को माधव में बाघों के पुनर्वास के सिंधिया के प्रस्ताव पर त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इस प्रस्ताव का अध्ययन करने के लिए केंद्र और राज्य के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम पार्क का दौरा करेगी। वहीँ इस मुलाकात में चीता पुनर्वास परियोजना पर भी विस्तार से चर्चा हुई थी।
जानकरी के मुताबिक एक दर्जन चीतों को नवंबर तक मप्र के कुनो नेशनल पार्क में लाया जाना है, लेकिन दक्षिण अफ्रीका में राजनीतिक स्थिति और मप्र के चंबल क्षेत्र में बाढ़ ने परियोजना को धीमा कर दिया है। दोनों नेताओं ने मध्य प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में विश्व स्तरीय इको-वन्यजीव पर्यटन विकसित करने के तरीकों पर भी चर्चा की थी।इधर माधव नेशनल पार्क में बाघों के पुनर्स्थापन पर प्रस्ताव देते हुए सिंधिया ने कहा कि माधव नेशनल पार्क ने 200 से अधिक वर्षों से बाघों की आबादी को बनाए रखा है। यह क्षेत्र तत्कालीन ग्वालियर शाही परिवार का रिजर्व पार्क हुआ करता था और बाघों की एक मजबूत आबादी का दावा करता था।
वन विभाग की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 1980 में यहां चार बाघ थे और 1981 और 1987 में केवल एक ही रह गया था। आखिरी बार माधव में एक ‘बहुत स्वस्थ वयस्कबाघ जिसकी लंबाई 8.5 फीट थी को 26 फरवरी, 1996 को पार्क में देखा गया था। हालांकि लापरवाही के कारण बाघों की सफारी को बंद कर दिया गया और बाघों को स्थानांतरित करना पड़ा। 1999 में, मप्र सरकार ने माधव राष्ट्रीय उद्यान के आवास को बेहतर बनाने और इसे जंगली बाघों के लिए उपयुक्त बनाने के तरीके खोजने का फैसला किया गया था।
सिंधिया ने कहा था कि माधव नेशनल पार्क में बसने वाले पड़ोसी संरक्षित क्षेत्रों से बाघों को तितर-बितर करने की संभावना सबसे अच्छा संभव समाधान प्रतीत होता है। इस पर 1999 में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया था और 2005 में, मप्र सरकार ने माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के पुनरुत्पादन के प्रस्ताव की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने नवंबर 2006 में अपनी सिफारिश दी थी वहीँ उन्होंने पर्यावरण एंट्री से जल्द से जल्द माधव नेशनल पार्क में बाघों के पुनर्स्थापन की बात कही है। जिसके बाद ऐसा लगने लगा है कि जल्द ही ज्योतिरादित्य का 25 वर्ष पुराना ये सपना पूरा हो सकता है।