हाई कोर्ट का तल्ख सवाल – क्या सरकारी कॉलेज से पीजी कोर्स करने वाले को ही मिलेगी नियुक्ति, नोटिस जारी कर मांगा जवाब

Kashish Trivedi
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जबलपुर, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (MP High court) ने एक बड़ी सुनवाई के दौरान चिकित्सा शिक्षा विभाग (medical education department) से पूछा है कि क्या सिर्फ मेडिकल कॉलेज से ही पीजी कोर्स (PG Courses) करने वाले को नियुक्ति का प्रावधान है। दरअसल ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि एक बार फिर से निजी और शासकीय का विवाद शुरू हो गया है। मामला हाई कोर्ट पहुंचने के बाद इस पर बहस जारी है। वहीं इस मामले में HC ने गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन सहित मेडिकल एजुकेशन विभाग की प्रमुख सचिव और डायरेक्टर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।

अदालत में हुई और सुनवाई में एक तरफ जहां समानता के अधिकार की बात की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ अन्य पक्ष का कहना है कि निर्धारित नियम का पालन करना भी अनिवार्य है। जिसके बाद मन मांगी मांगों को पूरा नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगल पीठ ने मेडिकल एजुकेशन विभाग की प्रमुख सचिव और डायरेक्टर को नोटिस जारी कर दिया है। मामले की अगली सुनवाई 16 अगस्त को होनी है। इससे पहले याचिकाकर्ता डॉ. अंजना बंथिया की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा।

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इस दौरान दलील पेश करते हुए वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने निजी मेडिकल कॉलेज से मेडिकल एंड डेंटल सर्जन का कोर्स किया। जुलाई 2007 में जीएमसी के सीनियर रेजिडेंट की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। जिसके लिए 20 जुलाई को साक्षात्कार के लिए याचिकाकर्ता को बुलाया गया था। वही कॉलेज प्रशासन ने याचिकाकर्ता की दावेदारी को खारिज करते हुए कहा कि जीएमसी-सरकारी मेडिकल कॉलेज से स्नातक नहीं होने के कारण उन्हें नियुक्ति नहीं दी जाएगी।

जिस पर विवाद खड़ा हो गया है। जीएमसी में MDS Course नहीं होता है। इस तरह के नियम को पक्षपातपूर्ण बताते हुए वकील ने अदालत संविधान के समानता के नियम की दलील दी है। इससे पहले याचिकाकर्ता ने चिकित्सा शिक्षा मंत्री और डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन को भी आवेदन देकर दावेदारी स्वीकार करने की मांग की थी। कोई कार्यवाही नहीं होने के बाद याचिकाकर्ता द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है। इस मामले में नोटिस जारी कर जवाब मांगे गए हैं। जीएमसी की तरफ से नोटिस के जवाब पेश होने के बाद न्यायालय द्वारा आदेश निर्देश पारित किए जाएंगे।


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