भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश (madhya pradesh) के कर्मचारी (employees) सरकार के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। दरअसल कई कर्मचारियों के हड़ताल के बाद अब बिजली कर्मचारियों (electricity employees) ने भी हड़ताल का ऐलान किया था। जिस पर ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर (pradyman singh tomar) ने सख्त रुख अख्तियार किया है। प्रद्युमन सिंह तोमर ने कहा की कंपनी के कर्मचारियों की मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। वहीं जिन मांगों पर आर्थिक भार नहीं है। उन्हें सबसे पहले पूरा करेंगे लेकिन सरकार किसी भी कीमत पर हड़ताल नहीं चाहती है।
दरअसल देर रात यूनाइटेड फोरम के संयोजक वीकेएस परिहार (BKS Parihar) के नेतृत्व में कर्मचारी प्रतिनिधि मंडल मंत्री से मिलने उनके बंगले पर पहुंचे थे। इस दौरान ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि यदि कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं तो इसका असर विभाग की कार्य विधि पर देखने को मिलेगा।
इधर मंत्री के आश्वासन के बाद प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि इंजीनियर व कर्मचारी खुद नहीं चाहते हैं लेकिन उनकी मांगों पर सुनवाई नहीं हो रही है। जिससे वह परेशान है। उपभोक्ताओं का भी दबाव बिजली कर्मचारियों पर बढ़ता जा रहा है जिसके बाद कर्मचारियों के पास और कोई विकल्प नहीं बचता है।
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वही प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि मंत्री से आश्वासन मिलने के बाद इंजीनियर और कर्मचारी काम पर लौट गए हैं। प्रदेश भर के बिजली कंपनियों के इंजीनियर -हजारों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे। दरअसल हड़ताल किसी एकजुट करने की जा रही थी बल्कि सभी कर्मचारी अपने अपने घरों में मोबाइल बंद करके बैठे थे।
वहीं कर्मचारियों की मोबाइल बंद इस हड़ताल से कामकाज ठप हो गए थे वहीं बिजली आपूर्ति व्यवस्था पूरी तरह से लड़खड़ा गई थी। हालांकि कर्मचारियों की हड़ताल का असर राजधानी में तो देखने को नहीं मिला लेकिन प्रदेश के कई ऐसे जिले हैं। जहां इसका असर अधिक देखने को मिला था। रात तक बिजली बहाल नहीं होने की वजह से राजधानी के कई इलाके सहित प्रदेश भर के कई जिलों में कई घंटे तक बिजली गुल रही थी। इस बीच कर्मचारी दफ्तर तक नहीं पहुंचे थे और ना ही उनके मोबाइल खुले थे।
इधर इस मामले में यूनाइटेड फोरम फॉर पावर एंप्लाइज के संयोजक बीकेएस परिहार का कहना है कि केंद्र सरकार बिजली कंपनियों को निजी हाथों में देने संबंधी बिल लाने जा रही है। अगर यह बिल पास होता है तो कंपनी निजी हाथों में चली जाएगी और इसके अंदर काम करने वाले हजारों कर्मचारी अधिकारी को निजी कंपनियों की बात माननी होगी। जहां उनका शोषण होगा उपभोक्ता की भी सुनवाई नहीं होगी। इसलिए ऐसा करना गलत है।