Thu, Dec 25, 2025

हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर हैं – प्रवीण कक्कड़

Written by:Kashish Trivedi
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हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर हैं – प्रवीण कक्कड़

भोपाल, प्रवीण कक्कड़ इन दिनों पूरा भारत त्यौहार (festivals ) के रंग में डूबा हुआ है। करीब 2 साल बाद कोरोना (corona) का जोर कुछ कम हुआ और लोग सामूहिक कार्यक्रमों में शामिल हो पा रहे हैं। नवरात्रि (navratri 2021) में माता दुर्गा (maa durga) की प्रतिमाओं की स्थापना हुई और 9 दिन तक अनुष्ठानपूर्वक माता की आराधना की गई। दसवें दिन विजयादशमी (vijayadashmi) का पर्व आ गया और रावण के पुतला दहन में भी लोगों ने काफी उत्साह से भाग लिया। त्योहारों के इसी क्रम में जल्द ही ईद मिलाद उन नबी, वाल्मीकि जयंती और दीपावली (Deepawali 2021) भी आने वाली हैं। इन सारे त्योहारों का हमारे जीवन में बहुत गहरा महत्व है। यह सारे त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह से रचे बसे हैं कि असल में इन्हीं के माध्यम से समरस समाज का निर्माण होता है।

सामान्य दिनों में तो हमारे भीतर उत्साह तभी आता है जब हम अपने परिवारजनों के साथ या मित्रों के साथ हंसते मुस्कुराते हैं, लेकिन त्योहार एक ऐसा वातावरण पूरे भारत को देते हैं जिसमें सहज रूप से सभी के भीतर उल्लास छा जाता है। समस्त मानव जाति पर एक साथ उल्लास जाने के इसी भाव को भारतीय दर्शन में प्रमोद भाव कहा गया है। नवरात्रि की समाप्ति पर जब प्रतिमाओं का विसर्जन होता है तो ढोल नगाड़े के साथ नौजवान और नवयुवतियां दुर्गा जी की प्रतिमा का विसर्जन करने नियत स्थान पर जाते हैं।

वे रास्ते भर झूमते गाते और धार्मिक भक्ति में सराबोर होते हैं। हम सबने देखा कि विजयादशमी के दिन रावण दहन के समय किस तरह से हजारों लोग बुराई के प्रतीक रावण का दहन देखकर प्रसन्न होते हैं। ईद उल मिलाद उन नबी पर पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मदिन है, तो वाल्मीकि जयंती भारत के सबसे आराध्य ग्रंथ रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के कार्यों को याद दिलाती है। दीपावली के पर्व पर भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या वापस आते हैं, जहां सारे नर नारी दीप जला कर उनका स्वागत करते हैं। इसीलिए यह दीपोत्सव है।

इन त्योहारों में बड़ी ही शालीनता से हमारी संस्कृति ने आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां भी जोड़ दीं। इस दौरान बड़े पैमाने पर मेले लगते हैं, बाजार भराते हैं, रामलीला होती है, छोटे बड़े कस्बों में भांति-भांति के आयोजन होते हैं, लोग जमकर खरीददारी करते हैं। घरों को सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, नए वाहन खरीदते हैं और बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जो होती तो असल में उत्साह से हैं, लेकिन उन्हें आर्थिक गतिविधि बड़े सलीके से पिरोई जाती है। एक तरह से यह त्यौहार हमारी धर्म और संस्कृति के साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे प्राचीन पहिया है। यह अमीर को खर्च करने का और गरीब को नई आमदनी हासिल करने का मौका देते हैं।

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भगवान गणेश की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले, मां दुर्गा की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले और रावण के पुतले बनाने वाले ज्यादातर लोग कारीगर वर्ग से आते हैं। वे साल भर मेहनत करते हैं और इस डेढ़ महीने के अंतराल पर उनका सारा व्यापार निर्भर करता है महामारी और लॉकडाउन के कारण यह पूरा वर्ग पिछले 2 साल से आर्थिक रूप से बड़ी भारी वंचना का शिकार होता रहा है, ऐसे में आशा है कि जिस तरह से अभी तक के त्यौहार बहुत शांति और उल्लास के साथ बीते, आने वाले त्यौहार भी बिना किसी स्वास्थ्य संकट के गुजर जाएं।

धार्मिक और आर्थिक गतिविधि के साथ ही इन त्योहारों में अलग-अलग धर्म के लोगों को एक दूसरे के रीति रिवाज और संस्कार समझने का मौका मिलता है। ऐसे में हिंदू जान पाता है पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के इस धरती पर आने से मानवता का क्या कल्याण हुआ और मुस्लिम समुदाय के लोग यह समझ पाते हैं कि भगवान राम ने असुरों का संहार करके यानी दुष्टों का संहार करके किस तरह से इस धरती को आम आदमी और पवित्र आत्माओं के रहने योग्य स्थान बनाया। वाल्मीकि जयंती पर वाल्मीकि समुदाय इसमें ना सिर्फ महर्षि वाल्मीकि की आराधना करता है, बल्कि उसे यह गौरव करने का अवसर भी प्राप्त होता है कि हिंदू समाज के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ वाल्मीकि रामायण की रचना उसी के समाज के महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इस तरह से यह पर्व भारत में जात-पात के बंधन और ऊंच-नीच के भेदभाव को खत्म करने का भी काम करते हैं।

जब समाज के हर धर्म और हर जाति के लोग समान रूप से प्रसन्न होते हैं। एक दूसरे से घूलते-मिलते हैं। एक दूसरे के तीज त्यौहार में शिरकत करते हैं तो उससे इन सारी संस्कृतियों के मिलन से महान भारतीय संस्कृति का निर्माण होता है। भारत की यही वह संस्कृति है जिसको पूरी दुनिया में श्रद्धा और सम्मान की निगाह से देखा जाता है। हमें हर कीमत पर इस सभ्यता, संस्कृति और परंपरा के मान सम्मान की रक्षा करनी चाहिए और इसकी रक्षा का मूल स्थान है आपसी भाईचारा और प्रेम।

यह भी एक कटु सत्य है कि कई बार कुछ असामाजिक तत्व इन धार्मिक पर्वों का इस्तेमाल अपने गलत इरादों को पूरा करने के लिए करते हैं और समाज में वैमनस्य का काम करते हैं। जाहिर है कि हम सब लोग ऐसी ताकतों से सतर्क रहेंगे और हर उस काम में शामिल होंगे जो भारत को एकता के सूत्र में बांधता है और सभी धर्मों में प्रेम बढ़ाता है। आइए हम सब मिलकर ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हम सब को स्वस्थ रखें, भारत से महामारी का साया दूर करें और इस तरह से यहां की जनता को एक बार फिर से चलने फिरने और व्यापार करने की आजादी दें ताकि सबके घरों में चूल्हा जले, सबके घरों में उत्सव मने और हमारे घरों और आत्मा में उस ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु का वास हो।

Note: लेखक प्रवीण कक्कङ सुप्रसिद्द समाजसेवी है।आप शासकीय सेवा के लंबे अनुभव के साथ केन्द्रीय मंत्री व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के ओएसडी भी रह चुके है