भोपाल, प्रवीण कक्कड़। आजकल जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, उसमें डीजल-पेट्रोल और गैस जैसे पारंपरिक ईंधन की कीमतें सबसे प्रमुख हैं। इसके साथ ही देश के बिजली घरों के सामने बढ़ते कोयला संकट पर भी रह रह कर बातचीत होती रहती है। यह सारे इंधन असल में पेट्रोलियम और फॉसिल फ्यूल से बने हैं।
यूरोप से शुरू हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से लेकर आज तक इन ईंधन ने मानव सभ्यता के तेज विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। इसमें संदेह नहीं है कि अभी भी इनके पास बहुत सी भूमिका निभाने की गुंजाइश बची है लेकिन कोई भी चीज हमेशा के लिए नहीं होती। इन पारंपरिक ईंधन के मामले में भी यही स्थिति हमारे सामने उत्पन्न हो गई है। बिजली पैदा करने के लिए कोयला उत्खनन के क्षेत्र सीमित होते जा रहे है, इसके अलावा कोयला उत्खनन के लिए जंगलों को उजाड़ना एक नई पर्यावरण चुनौती बनती जा रही है।
वाहनों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोलियम पदार्थ यद्यपि काफी ताकतवर हैं, लेकिन इनसे निकलने वाला धुआं भी पर्यावरण के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है। पेट्रोलियम संसाधन कुछ चुनिंदा देशों के पास ही है, ऐसे में इनकी कीमतों पर भू राजनीतिक परिस्थितियों का लगातार असर पड़ता रहता है। ऐसे में कोई भी देश अब पूरी तरह से पारंपरिक की ईंधन पर निर्भर नहीं रह सकता है। इसकी एक वजह तो राजनीतिक हो गई, दूसरी ईंधन की बढ़ती कीमतें हो गई और तीसरी इनके उपयोग के कारण पर्यावरण के सामने पेश होने वाली चुनौतियां हैं।
ऐसे में बिजली उत्पादन के मामले में सौर ऊर्जा (energy) को लेकर पूरी दुनिया में खासा उत्साह है। आज से 30 साल पहले जो टेक्नोलॉजी उपलब्ध थी, उसमें सौर ऊर्जा का बहुत सुगमता से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था लेकिन आज इस तरह की तकनीक हमारे पास मौजूद है जिसमें पारंपरिक ईंधन से कम कीमत पर 12 महीने सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्कैंडिनेविया के देशों में कचरे से बिजली पैदा करने के संयंत्र सफलतापूर्वक चल रहे हैं। इसराइल जैसे देशों ने आज से कई वर्ष पूर्व भी सोलर पॉन्ड का इस्तेमाल करके सौर ऊर्जा का बहुत सलीके से इस्तेमाल किया है। भारत जैसे देश में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के इस्तेमाल की अपार संभावनाएं हैं।
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वाहनों के मामले में भी अब पूरी दुनिया की टेक्नोलॉजी डीजल और पेट्रोल की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ रही है। भारत में महिंद्रा कंपनी कुछ वर्ष पूर्व इलेक्ट्रिक कार लेकर आई थी लेकिन तब सीमित दक्षता के कारण वह इतनी लोकप्रिय नहीं हो सकी। लेकिन अब तो दुनिया में बड़ी कार कंपनियां इलेक्ट्रिक कारों की तरफ रुख कर रही हैं और विश्व का राजनीतिक नेतृत्व भी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के बारे में पूरा प्रयास कर रहा है।
भारत में टाटा और ओला जैसी कंपनियां अब इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल की तरफ क्रांतिकारी कदम बढ़ा रही हैं। दो पहिया वाहन के मामले में पहले ही देश में इलेक्ट्रिक वाहन आ चुके हैं। अगर आपने गौर किया हो तो जब आपके नजदीक से कोई इलेक्ट्रिक दो पहिया वाहन गुजरता है तो ना तो आपको उसके इंजन का शोर सुनाई देता है और ना वहां से कोई धुआं निकलता है। इस तरह से कोई गैर तकनीक वाला आदमी भी समझ सकता है कि इलेक्ट्रिक वाहन कम से कम वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण को तो कम करते ही हैं।
अगर ध्यान करें तो पर्यटन स्थलों और एयरपोर्ट पर इलेक्ट्रिक से चलने वाले छोटे-छोटे चार पहिया वाहन पहले से ही प्रयोग में आ रहे हैं, अब तक इन वाहनों का इस्तेमाल सीमित था क्योंकि इनकी क्षमता कम थी। यह कम समय के लिए चार्ज किए जा सकते थे और लंबा सफर तय करने की इनकी क्षमता नहीं थी। लेकिन तकनीक में हुए नए आविष्कारों ने इन सारी बाधाओं को दूर कर दिया है।
हम ऊर्जा के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं जिसमें हमें इको फ्रेंडली बिजली मिलेगी और हमारे वाहन भी बहुत कम प्रदूषण फैलाएंगे। आजकल जिस तरह से भारत के शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है और पूरी दुनिया क्लाइमेट चेंज का सामना कर रही है, वैसे में हमें जल्दी से जल्दी इस नई टेक्नोलॉजी के साथ खुद को अभ्यस्त बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
हमें अब बहुत भारी भरकम वाहनों की जरूरत को त्याग देना चाहिए और प्रकृति में संतुलन पैदा करने वाली इको फ्रेंडली वाहन की तरफ सोचना चाहिए। नीति निर्माता या कंपनियां प्रोडक्ट पैदा कर सकती हैं और उनको लेकर प्रोत्साहन का माहौल बना सकती हैं, लेकिन उनका उपयोग तो अंततः हम और आप जैसे उपभोक्ताओं को ही करना है। हम जितनी तेजी से पर्यावरण के अनुकूल तकनीक को अपनाएंगे उतनी ही तेजी से हमारे आसपास का वायुमंडल और ईंधन की खपत का परिदृश्य बदल जाएगा। जब यह परिदृश्य बदलेगा तभी जाकर हमें महंगे डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस से छुटकारा मिलेगा। ईंधन के मामले में नई तकनीक अपनाकर हम सही मामलों में आत्मनिर्भर बनेंगे।