भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के मौके पर आज पूरी दुनियां में पर्यावरण के हालात और प्रकृति को बचाने पर चर्चा हो रही है, संकल्प दिलाये जा रहे हैं, शपथ ली जा रही है। क्योंकि कोरोना महामारी के इस दौर ने दुनिया को ऑक्सीजन यानि शुद्ध वायु के महत्त्व को अच्छे से बता दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मनुष्य को अगले तीन सेकण्ड की साँस के लिए खुद इंतजान करना होगा इसके लिए सबसे जरुरी है पौध रोपण तभी प्रकृति का संतुलन बचा रह सकता है।
ये है विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास
पर्यावरण को लेकर राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1972 में 5 जून से 16 जून तक स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहला विश्व पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था इसमें चर्चा के बाद 5 जून को हर साल विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाने का फैसला लिया गया। तभी से दुनिया 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाती आ रही है। इस सम्मेलन में भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी शामिल हुई थी।
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हर साल नई थीम पर मनाया जाता है
विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) पूरी दुनिया 5 जून को विशेष थीम के साथ मनाती है। इस साल यानी 2021 की थीम है “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली” (Ecosystem Restoration) है। इसका मकसद साफ़ है कि नए पौदेह लगाकर, वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर, जंगल को बचाकर, बारिश के पानी को संरक्षित कर हम पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल कर सकता हैं यानि हम अपने ईको सिस्टम को री स्टोर कर सकते हैं।
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बढ़ता प्रदूषण पेड करता है कई मुश्किलें
बढ़ते प्रदूषण के कारण कई तरह की परेशानियां इंसान पहले ही झेल रहा है , बढ़ता तापमान , काम होते पेड़ पौधे , गिरता जल स्तर, नदियों की सूखना प्रकृति के असंतुलन का बड़ा कारण है जिसकी वजह से कई बीमारियां भी पैदा हो रही हैं। पशु पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं। प्राकृतिक वातावरण पर विपरीत असर हो रहा है। जो भविष्य के लिहाज से बहुत खतरनाक है।
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प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा है आज का परिदृश्य
ग्रीनमैन के नाम से प्रसिद्ध दुनिया में पर्यावरण की अलख जगाने वाले विजयपाल बघेल कहते हैं कि आज हमने कोरोना महामारी में प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा देख लिया। समाचार एजेंसी एआईएनएस से बात करते हुए ग्रीनमैन विजयपाल बघेल ने कहा कि आज पेड़ कम हो रहे हैं, यानि सांसें कम हो रही हैं। चारों तरफ ऑक्सीजन के लिए लोग लाइन में सिलेंडर लिए खड़े हैं। उन्होंने कहा कि आज के दिन हमें संकल्प लेना होगा कि अगले तीन सेकण्ड की साँस का इंतजाम हम खुद करेंगे क्योंकि हमें एक दिन जिन्दा रहने के लिए 22 हजार बार साँस लेनी होती है। तभी इस दिन को मनाना सार्थक होगा।