गुजरात सरकार ने तीन अहम मोर्चों पर बड़े फैसले लिए हैं. सहकारी संस्थाओं में भर्तियों की पारदर्शिता, शिक्षकों की अस्थायी नियुक्तियां और सरकारी इमारतों की मरम्मत। इन नीतियों का असर राज्य की प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था पर सीधा पड़ेगा।
राज्य की सहकारी बैंकों, डेयरियों और संस्थाओं में अब सिफारिशों के आधार पर रिश्तेदारों की नियुक्ति नहीं हो सकेगी। केंद्र सरकार की नई सहकार नीति के तहत गुजरात में सहकारी भर्ती बोर्ड की स्थापना की जाएगी, जो UPSC या GPSC की तरह परीक्षाओं के माध्यम से स्टाफ की भर्ती करेगा। इससे चेयरमैन, एमडी या पदाधिकारी अब अपने सगे-संबंधियों को सीधे नौकरी नहीं दिला सकेंगे।
दूसरी ओर, राज्य के शिक्षा विभाग ने अब सेवानिवृत्त शिक्षकों को फिर से भर्ती करने का निर्णय लिया है। ज्यान सहायकों की भर्ती के बावजूद खाली पद भरने के लिए यह निर्णय लिया गया है। सेवानिवृत्त शिक्षकों को ज्यान सहायक के बराबर वेतन देकर एक साल के कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त किया जाएगा। हालांकि, इस फैसले से युवा अभ्यर्थियों में नाराजगी है, जिन्हें अब कम अवसर मिलते दिख रहे हैं।
तीसरा बड़ा फैसला सरकारी मकानों और जर्जर हो चुकी इमारतों की मरम्मत से जुड़ा है। गंभीरा ब्रिज हादसे के बाद सरकार ने सभी सरकारी संपत्तियों की देखभाल के लिए एक नई ऑथोरिटी बनाने का निर्णय लिया है। यह ऑथोरिटी भवनों, ब्रिज और अन्य संपत्तियों की जांच, मरम्मत और सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। इसकी निगरानी सीधे मुख्यमंत्री डैशबोर्ड से की जाएगी और इसे वित्तीय बजट भी दिया जाएगा।
गुजरात सरकार अब भर्ती व्यवस्था, शिक्षा क्षेत्र और अवसंरचना सुरक्षा को लेकर सख्ती से पेश आ रही है। जहां एक ओर यह पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक कदम है, वहीं कुछ फैसलों से अस्थायी नाराजगी भी देखने को मिल रही है।





