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Thu, Dec 18, 2025

250 करोड़ की जमीन पर विवाद! गुजरात यूनिवर्सिटी ने बिना टेंडर निजी कंपनी को दिया प्लॉट

Written by:Neha Sharma
Published:
गुजरात की सबसे बड़ी और अक्सर विवादों में घिरी रहने वाली गुजरात यूनिवर्सिटी एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला वेस्टर्न अहमदाबाद के वस्त्रापुर इलाके में अंधजन मंडल के पास स्थित एक मूल्यवान प्लॉट को निजी कंपनी को किराए पर देने से जुड़ा है।
250 करोड़ की जमीन पर विवाद! गुजरात यूनिवर्सिटी ने बिना टेंडर निजी कंपनी को दिया प्लॉट

गुजरात की सबसे बड़ी और अक्सर विवादों में घिरी रहने वाली गुजरात यूनिवर्सिटी एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला वेस्टर्न अहमदाबाद के वस्त्रापुर इलाके में अंधजन मंडल के पास स्थित एक मूल्यवान प्लॉट को निजी कंपनी को किराए पर देने से जुड़ा है। यह जमीन पहले यूनिवर्सिटी को दान में मिली थी, लेकिन आरोप है कि बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के इसे 11 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर राधे एंटरप्राइज नाम की कंपनी को किराए पर दे दिया गया। इस सौदे में रोजाना 75,000 रुपये किराया और 20 लाख रुपये एडवांस तय हुआ था। कांग्रेस नेता पार्थिवराज कठवाड़िया ने आरोप लगाया कि शैक्षणिक उद्देश्य के लिए दी गई जमीन का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है, जो नियमों के खिलाफ है। मामले को लेकर यूथ कांग्रेस ने राज्यपाल से शिकायत करने की बात कही, जिसके बाद विरोध बढ़ने पर वहां चल रहा निर्माण कार्य रोक दिया गया।

250 करोड़ की जमीन पर विवाद!

कांग्रेस के विरोध के बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन ने यू-टर्न लेते हुए राधे एंटरप्राइज के साथ किया गया अनुबंध रद्द कर दिया। इस प्लॉट का मूल्य करीब 250 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। यूनिवर्सिटी की ओर से बिना टेंडरिंग के जमीन देने पर सवाल उठे, क्योंकि नियम के अनुसार कोई भी संपत्ति किराए पर देने के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। विरोध के चलते निर्माण कार्य बीच में ही रोक दिया गया और मामले की गंभीरता को देखते हुए यूनिवर्सिटी ने स्पष्ट किया कि अब भविष्य में किसी भी तरह की जमीन या ग्राउंड किराए पर देने के लिए सख्त नियमों का पालन किया जाएगा।

गुजरात यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता ने इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि पहले भी नियमों के तहत ग्राउंड किराए पर दिया गया था, जैसे कि तिब्बती बाजार या पर्यटन विभाग को गरबा आयोजन के लिए। इस बार भी प्लॉट राधे एंटरप्राइज को किराए पर दिया गया था, लेकिन कंपनी ने बिना किसी अनुमति के निर्माण कार्य शुरू कर दिया। जैसे ही यह जानकारी यूनिवर्सिटी को मिली, निर्माण कार्य तुरंत रुकवाया गया और किराए का आदेश रद्द कर दिया गया।

कुलपति ने आगे बताया कि यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद (EC) की बैठक में तय किया गया है कि अब किसी भी तरह की जमीन या ग्राउंड देने से पहले सख्त प्रक्रिया अपनाई जाएगी। साथ ही, जहां भी जमीन किराए पर दी जाएगी, वहां किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य सख्त मना होगा। इस विवाद ने एक बार फिर गुजरात यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं और यह साफ कर दिया है कि शैक्षणिक संस्थानों की संपत्ति का इस्तेमाल केवल शिक्षा और जनहित के कार्यों के लिए होना चाहिए।