भारतीय किसान संघ ने वापस लिया अपना समर्थन, 6 फरवरी के चक्का जाम कार्यक्रम में संघ नहीं होगा शामिल

Gaurav Sharma
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जबलपुर,संदीप कुमार। कृषि कानूनों को वापिस लेने की मांग के साथ 6 फरवरी को होने वाले देशव्यापी चक्काजाम आंदोलन से देश के सबसे बड़े किसान संगठनों में शुमार भारतीय किसान संघ ने अपने आप को अलग कर लिया है। भारतीय किसान संघ द्वारा जारी विज्ञप्ति में अखिल भारतीय महामंत्री बंद्रीनारायण चौधरी ने बताया कि करीब 70 दिनों से दिल्ली की सीमा पर जो किसान आंदोलन चल रहा है। पहले तो यह थोड़ा-थोड़ा राजनैतिक लगता था, परंतु अब वहां अधिकांश राजनैतिक दलों का और राजनैतिक नेताओं का जमावड़ा चल रहा है। इससे स्पष्ट हो गया है कि यह पूर्णतः राजनैतिक हथकंडा ही है।

किसान संघ ने की अपील

किसान नेता चौधरी ने कहा कि भारतीय किसान संघ को अंदेशा था कि यह आंदोलन मंदसौर जैसा हिंसक रूप लेगा, 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन जो हिंसा का स्वरूप सामने आया वह सारे देश ने देखा। इसलिये भारतीय किसान संघ 6 फरवरी को चक्का जाम में अनहोनी की आशंका के चलते किसान संघ के कार्यकर्ताओ से अपील करता है कि वह इस चक्काजाम को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन न करें और न शामिल हों।

भारतीय किसान संघ ने वापस लिया अपना समर्थन, 6 फरवरी के चक्का जाम कार्यक्रम में संघ नहीं होगा शामिल

6 फरवरी को लें संयम से काम

भारतीय किसान संघ, देश का सबसे बड़ा किसान संगठन, राष्ट्रवादी एवं गैर राजनैतिक होने के कारण एवं हिंसक, चक्का जाम और भूख हड़ताल जैसे कार्यों का नीतिगत समर्थन नहीं करता हैं। यह संगठन राष्ट्रहित की चौखट में ही किसान हित को देखकर चलता है। अतः 6 फरवरी के चक्का जाम का हम समर्थन नहीं करते हैं। देश के आमजन विशेषकर किसान बंधुओं से आग्रह है कि वे 6 फरवरी के दिन संयम से काम लें और शांति स्थापना में ही सहयोगी बनें।

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आंदोलन में सक्रिय है राष्टविरोधी तत्व

किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री चौधरी ने आगे कहा कि 26 जनवरी पर अपने राष्ट्रध्वज को अपमानित करना व सरेआम दिनदहाड़े इसको स्वीकारोक्ति देना, राष्ट्र विरोधी तत्व ही कर सकते है। ऐसा लगता है कि इस आंदोलन के अंदर पर्याप्त संख्या में अराष्ट्रीय तत्व सक्रिय हो चुके हैं। जो अपनी मजबूत पकड़ करने में भी सफल हो गये है। इसी कारण संसद में पारित कानूनों, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का भी सम्मान नहीं करके लोकतंत्र विरोधी कार्य किसानों के नाम पर सामने आ रहे हैं।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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