भोपाल। देश की राजनीति में हमेशा से दबदबा कायम रखने वाले सिंधिया राजपरिवार की हार की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। क्योंकि गुना संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने चुनाव की सिर्फ खानापूर्ति की थी। जबकि भोपाल, समेत अन्य सीटों पर भाजपा ने चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन गुना में भाजपा का चुनाव प्रचार सिंधिया के चुनाव प्रचार की अपेक्षा बहुत कम था। चुनाव प्रचार के लिए मोदी या शाह की सभा नहीं की गई। इसके बावजूद भी जनता ने मोदी लहर में सिंधिया को हरा दिया। इस फैसले से भाजपा भी हैरान है।
गुना संसदीय क्षेत्र में भाजपा के स्टार प्रचारक केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एवं उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी सभाएं की थी। पिछले च��नाव में जहां प्रधानमंत्री मोदी ने गुना संसदीय क्षेत्र में चुनावी सभा ली थी, लेकिन इस बार भाजपा ने गुना संसदीय सीट को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। विधानसभा एवं विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने जिस तरह से चुनाव प्रचार किया, उसके मुकाबत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गुना सीट पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। यहां सिर्फ चुनावी सभाओं के अलावा प्रत्याशी केपी यादव स्थानीय नेताओं के साथ अकेले घूमे। शिवपुरी जिले में केपी यादव की ज्यादा पहचान नहीं है। न ही वे ज्यादा चर्चित नेता है।
इस बार गांवों में विरोध रहा
सिंधिया पिछले चुनाव में शिवपुरी एवं गुना शहर से चुनाव हारे थे। इस बार भी उन्हें शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र से हार का सामना करना पड़ा। जिसकी यह वजह भी सामने आई है कि गुना संसदीय क्षेत्र में तीन जिले शिवपुरी, गुना और अशोकनगर की आठ सीटें आती हैं। जहां ज्यादा वोट बैंक ग्रामीण क्षेत्र से आता है। कर्जमाफी का सिंधिया को बड़ा नुकसान हुआ। वे चुनाव संभा में मंच ये कर्जमाफी का ऐलान करते, उसी सभा में किसान उनसे सवाल करते कि उनका कर्जमाफ नहीं हुआ।
भाजपा ने उठाया केपी की नारजगी का फायदा
गुना-शिवपुरी संसदीय सीट में जिस भाजपा प्रत्याशी केपी यादव ने कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को पराजित किया, दरअसल वह ज्यादा पूराना विवाद नहीं था। हुआ यूं कि लोकलेखा समिति के अध्यक्ष महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के निधन के बाद सिंधिया ने केपी यादव को मुंगावली सीट से उप चुनाव की तैयारी करने के लिए बोल दिया था।
इस बीच गोविंद सिंह राजपूत की सलाह पर उन्होंने बृजेंद सिंह यादव को प्रत्याशी बना दिया। केपी यादव टिकट काटे जाने से बेहद नाराज थे इसी नाराजी का फायदा भाजपा ने उठाया और केपी यादव को पार्टी में शामिल कर लिया। उपचुनाव में तो भाजपा ने केपी यादव को टिकट नहीं दी लेकिन विधानसभा चुनाव 2018 में मुंगावली से भाजपा ने उन्हें चुनाव लड़ाया था। यादव चुनाव हार गए। पार्टी ने फिर उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में उतारा तो उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु सिंधिया को पटकनी देकर अपने अपमान का बदला ले लिया।