भोपाल| मध्य प्रदेश की जनता आज महंगी बिजली का बोझ झेल रही है और आने वाले समय में यह बिजली करंट मारने वाली है, क्यूंकि बिजली अभी और महंगी होगी| जिसका सीधा प्रभाव प्रदेश के उस वर्ग पर पड़ेगा जो बिना चोरी किये नियमित रूप से बिजली का भुगतान कर रहा है| आखिर ऐसे हालात क्यों बने कि जनता पर इतना बोझ डालना पड़ा| इसके पीछे बड़े घोटाले का खेल खेला गया और नियम विरुद्ध ऐसे कारनामे को अंजाम दिया गया जिससे न सिर्फ आम जनता की गाढ़ी कमाई लूटी गई बल्कि सरकारी खजाने में भी चपत लगी| तीन आईएएस अधिकारियों की मिली भगत से बिजली खरीदी में लगभग 14000 करोड़ का घोटाला हुआ और अधिकारियों की कारगुजारी का परिणाम है कि आज प्रदेश की आम जनता महंगी बिजली का बोझ ढोने को मजबूर है|
दरअसल किस्सा पुराना है, लेकिन भ्रष्टाचार की गहरी परत के नीचे दफ़न है, जिसकी भनक सत्ता में बैठे जिम्मेदार नेताओं से लेकर अधिकारियों को भी है| अलग अलग कारणों से जब आज प्रदेश 1 लाख 85 हजार करोड़ के कर्ज में है, इसमें एक कड़ी बिजली खरीद में 14000 करोड़ के घोटाले की भी शामिल है| सरप्लस बिजली होने के बाद भी प्रदेश में सबसे महंगी बिजली है| अपने बिजली प्लांट से बिजली न लेकर निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदकर प्रदेश के लोगों को लूटा गया| जबकि केंद्र सरकार ने नियम बनाया है, जो कानून कहता है कि जब भी आप निजी कंपनी से समझौते करते हैं तो कॉम्पिटिटिव बिडिंग करना होती है, लेकिन यहां ऐसा न करते हुए डायरेक्ट समझौते किये गए| केंद्र सरकार ने सितंबर 2006 में ये नियम बना दिया था कि बिना बिड के अर्थात बिना टेंडर के कोई भी राज्य सरकार बिजली खरीदी के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट नहीं कर सकता, इसके बावजूद अधिकारियों ने मिलीभगत कर यह कारनामा कर दिया| मध्य प्रदेश की जनता आज महंगी बिजली का बोझ ढो रही है उसके पीछे तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव इकबाल सिंह बैंस और तत्कालीन ऊर्जा विभाग के मुख्य सचिव रहे चुके मोहम्मद सुलेमान द्वारा संपूर्ण रूप से अभिव्यक्त पूर्ण भ्रष्टाचार के साथ लिया गया पावर परचेज एग्रीमेंट का निर्णय है|
कर्ज का सबसे बड़ा कारण बिजली खरीदी में घोटाला
इन समझौते के कारण जनता महंगी बिजली की कीमत चुकाने को मजबूर है और इसका पैसा सिर्फ निजी कंपनियों के जेब में नहीं जा रहा, बल्कि कई रसूखदार भी इसका लाभ उठा रहे हैं| प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासनिक एवं राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने के सकंल्प के साथ सत्ता में आई नई सरकार अगर सितंबर 2006 के बाद जब बिना बिड के पावर परचेज एग्रीमेंट पर प्रतिबंध था तब हुए पावर परचेज एग्रीमेंट की फाइलों को लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को सौंप दें तो पता चल जाएगा कि 14000 करोड़ से अधिक मध्य प्रदेश विद्युत मंडल को कर्ज में लादने के लिए बिजली खरीदी में हुए घोटाले सबसे बड़े कारण है|
नियम विरुद्ध इन कंपनियों से किया एग्रीमेंट
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि सितंबर 2006 के बाद जब बिना बिड के पावर परचेज एग्रीमेंट पर पूरी तरह प्रतिबंध था तब राज्य के उपरोक्त तीनों नौकरशाहों ने सबसे पहले जेपी बीना, जेपी निगरी, डीएलए पावर गाडरवारा, एमबी पावर अनूपपुर तथा झाबुआ पावर लेको पावर अमरकंटक और डीबी पावर सिंगरौली के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट कर लिया| इसमें किसके और कितने की वारे न्यारे हुए यह जांच का विषय होगा, लेकिन प्रतिवर्ष अनुमानित दो हजार करोड़ से 3000 करोड़ का नुकसान राज्य को सन 2007 से हो रहा है और टेरिफ से अधिक कीमत पर बिजली खरीदी जा रही है| हालांकि सरकार चाहे तो पावर परचेज एग्रीमेंट को निरस्त कर सकती है क्योंकि मध्य प्रदेश विद्युत मंडल के 23000 करोड का कर्जा राज्य सरकार ने समायोजित किया है जबकि अभी भी 1000 करोड़ से अधिक की देनदारी बाकी है|
ठोस कदम उठाने की जरुरत
भ्रस्टाचार के अलावा लोकलुभावन नीतियों के कारण भी आम जनता को भारी नुक्सान पहुंचा है, जो टैक्स पेयर है और सरकार की लोकलुभावन योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पा रही है और सरकारी खजाने भरने में सबसे बड़ी भागीदार है| मध्य प्रदेश विद्युत मंडल पर 1000 करोड़ 1122 हजार करोड़ के अनुमानित घाटे का भी अंदेशा है जिसका कारण 50% चोरी 25% राजनीतिक दबाव में 25% अधिकारियों की मिलीभगत कुल मिलाकर मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में भ्रष्टाचार के तांडव को रोकने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ का मुख्य सचिव सुधीर रंजन मोहंती कोई ठोस कदम उठाने पड़ेंगे| नहीं तो आने वाले दिनों में एक विकराल समस्या सामने खड़ी होगी और प्रदेश अन्धकार में डूब सकता है|