भोपाल। मध्य प्रदेश के चारों बड़े शहरों में लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी अपने ही गढ़ में फंसती दिखाई दे रही है। प्रदेश के इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल में कांग्रेस ने ऐसी चाल चली कि बीजेपी को अपना गढ़ बचाने में कड़ संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि, इन चार में से सिर्फ इंदौर सीट पर अंतिम चरण में चुनाव होना है। उससे पहले यहां भी बीजेपी को इस बार कड़ी चुनौती मिल रही है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को इस बार इंदौर सीट पर जीत की उम्मीद है। ये चारों शहर बीजेपी के काफी लंबे समय से गढ़ रहे हैं। भोपाल और जबलपुर को तो संघ की प्रयोगशाला भी माना जाता है।
यह है बीजेपी को चुनौती का कारण
दरअसल, बीजेपी द्वारा इस बार 18 वर्तमान सांसदों का टिकट काट कर नए चेहरों पर दांव लगाने का प्रयास किया गया है। वहीं, कुछ ने खुद ही चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। वहीं, इंदौर में ताई का टिकट कटने से स्थानीय कार्यकर्ताओं समेत मराठी समाज में भी भारी नाराजगी है। कांग्रेस को इसी का लाभ मिलने की उम्मीद है। वहीं, हाल ही में विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद भी कांग्रेस, बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रही है। भोपाल और इंदौर बीजेपी के अभेद किलों में से हैं। इन दोनों ही सीटों पर बीजेपी बीते तीन दशकों से जीत रही है।
भाजपा ने 1996 से जबलपुर सीट और 1999 के बाद ग्वालियर सीट भी जीती, 2004-07 में कांग्रेस के रामसेवक सिंह जीते, लेकिन बाद में उन्हें संसद में ’पैसे लेकर सवाल’ पूछने के विवाद के बाद निष्कासित कर दिया गया था। इसके अलावा, ग्वालियर को छोड़कर, जहां 2014 के चुनावों के दौरान विजयी अंतर 29,699 था, अन्य सभी तीन सीटों पर, भाजपा ने 2 लाख से अधिक वोटों की भारी जीत दर्ज की
वरिष्ठ पत्रकार शम्स उर रहमान बताते हैं कि, ‘2018 के चुनावों में कांग्रेस ने 32 विधानसभा क्षेत्रों में से 18 में जीत हासिल की। इसलिए, पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है। इस बार भोपाल लोकसभा सीट से दिग्विय सिंह के चुनाव लड़ने से काफी दिलचस्प हो गया है। वहीं, ग्वालियर और मालवा में भी चुनावी मुकाबला रौचक बना हुआ है।
इंदौर में, कांग्रेस के पंकज संघवी को भाजपा के शंकर लालवानी के खिलाफ खड़ा किया गया है, जिन्हें सांसद और लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के टिकट काटने के बाद टिकट मिला था। जबलपुर में, सुप्रीम कोर्ट के वकील विवेक तन्खा को फिर से सांसद और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का सामना करना पड़ रहा है, जो तीन बार की राज्य सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर से जूझ रहे हैं।