भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा शासनकाल में हुए ई-टेडरिंग घोटाले में ईओडब्ल्यू द्वारा एफआईआर किये जाने के बाद हलचल मच गई है| वहीं इसको लेकर भाजपा में सिर-फुटव्वल शुरू हो गई है। संदेह के दायरे में आने के बाद शिवराज सरकार में पीएचई मंत्री रहीं कुसुम मेहदेले ने शिवराज पर ठीकरा फोड़ दिया है| महदेले ने साफ़ कहा है कि घोटाले की फाईल पर उन्होंने नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंजूरी दी है।
ई-टेडरिंग घोटाले में ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज एफआईआर में तत्कालीन पीएचई मंत्री कुसुम मेहदेले को शक के दायरे में रखने के बारे में जब उनसे पूछा तो उन्होंने साफ किया कि यह टेंडर पीएचई विभाग से नहीं जल निगम ने जारी किये थे। जल निगम के अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान थे। जबकि पीएचई मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री और एक अन्य मंत्री को निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया था। मेहदेले का कहना है कि टेंडर की प्रशासकीय मंजूरी और बजट स्वीकृति निगम के अध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री ने दी है। मेहदेले ने यह भी कहा कि जल निगम की किसी भी फाईल पर उनके हस्ताक्षर नहीं है। यही नहीं निगम की सारी गतिविधियों पर अध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री का नियंत्रण था।
दरअसल, जल निगम के तीन टेंडरों में छेड़छाड़ को लेकर एफआईआर की गई है। इन तीनों टेंडरों की राशि लगभग 18 सौ करोड़ रुपए है। जिस समय टेंडर घोटाला हुआ उस समय कुसुम मेहदेले मंत्री, प्रमोद अग्रवाल प्रमुख सचिव और पीएन मालवीय ईएनसी थे। ईओडब्ल्यू ने इन सभी को संदेह के दायरे में रखते हुए हेराफेरी कर टेंडर लेने वाली मुंबई की दो कंपनियों ह्यूम पाईप लिमिटेड और जीएमसी लिमिटेड के मालिक और डायरेक्टरों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया है।
2012 में बनाया था जल निगम
शिवराज सरकार ने 2012 में पीएचई विभाग के अधीन ही जल निगम बनाया था। इसमें पीएचई मंत्री के अधिकार अध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री को हासिल हो गए थे। घोटाले के बाद रख-रखाव के नाम पर जल निगम की वेबसाईड में काफी परिवर्तन किये जा रहे हैं।