भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (GMC) के अंतर्गत आने वाले हमीदिया अस्पताल (Hamidia Hospital Fire) में सोमवार की देर शाम लगी आग में मृत शिशुओं की संख्या अब सात पहुंच गई है। मुख्यमंत्री ने हादसे की जांच की बात कहते हुए लापरवाहों पर कठोर कार्रवाई की बात की है। इस मामले में भोपाल के संभाग आयुक्त और गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन की भूमिका पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।
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कैबिनेट की बैठक के पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हमीदिया अस्पताल में अग्निकांड में शिशुओं की मौत पर गहरा दुख प्रकट करते हुए मामले की जांच एसीएस स्वास्थ मोहम्मद सुलेमान से कराने की बात की और यह भी कहा कि किसी भी लापरवाह को छोड़ा नहीं जाएगा। इस मामले में गांधी मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों की फायर सेफ्टी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दरअसल हर हर साल चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रदेश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों को एक प्रपत्र भेजता है जिसमें फायर सेफ्टी एनओसी के बारे में जानकारी मनाई जाती है। मेडिकल कॉलेज के द्वारा यह जानकारी भेजी जाती है कि उसने किसी फायर सेफ्टी सलाहकार या एजेंसी से अनुबंध किया और फायर एनओसी प्राप्त की और ऐसी एजेंसी के द्वारा अस्पतालों में क्या कमियां पाई गई! क्वालिटी टीम के द्वारा अस्पताल के समस्त स्टाफ को फायर सेफ्टी हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है और मॉक ड्रिल भी किया जाता है जिसका विवरण भी हर साल भेजना होता है। इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि विभाग के द्वारा इस कार्य के लिए हर साल फंड भी दिया जाता है। लेकिन गांधी मेडिकल कॉलेज में फायर सेफ्टी एनओसी ली ही नहीं क्योंकि विभाग के पास यह जानकारी उपलब्ध ही नहीं है।
किसी भी मेडिकल कॉलेज की अधिशासी समिति होती है जिसका अध्यक्ष संभागायुक्त होता है और संबंधित मेडिकल कॉलेज के डीन उसके सचिव होते हैं। यानी गांधी मेडिकल कॉलेज से संबंधित भोपाल के अस्पतालों के बारे में यह जिम्मेदारी भोपाल के संभाग आयुक्त और गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन की थी। इसके साथ ही हमीदिया अस्पताल के क्वालिटी मैनेजर क्या कर रहे थे और इतनी महत्वपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था की अवहेलना क्यों की गई, अपने आप में एक बड़ा सवाल है और ऐसे में प्रथम दृष्टया संभाग आयुक्त और डीन की भूमिका संदेह के घेरे में है।