जबलपुर, डेस्क रिपोर्ट। मां पिता की इकलौती संतान होने या पुत्र ना रहने की स्थिति में विवाहित पुत्री भी सरकारी सेवक की मौत पर अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate appointment) प्राप्त कर सकती है। पिछले दिनों सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट (highcourt) ने पूरा मामला समझने के बाद यह आदेश दिया है। इसके साथ ही उन्होंने 3 माह के भीतर विवाहिता पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति देने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल माता पिता की मौत के बाद याचिकाकर्ता दिव्या दीक्षित की तरफ से अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ता विवाहित है। वहीँ हाईकोर्ट ने समानता के अधिकार के बात करते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 का जिक्र किया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच के 2014 के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि विवाहिता होने पर अनुकंपा नियुक्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
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हाईकोर्ट ने कहा कि विवाहिता होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करना पूरी तरह से अनुचित है। इसके साथ ही हाईकोर्ट द्वारा फैसला याचिकाकर्ता के हक में दिया गया। महानिदेशक, जेल अधीक्षक को 3 माह के भीतर समुचित निर्णय लेकर मामला सुलझाने के आदेश दिए गए हैं। बता दें कि जबलपुर निवासी दिव्या दिक्षित की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। वही याचिका में कहा गया था कि उनके पिता स्व. कृष्ण कुमार पांडे जबलपुर में जेल अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे।
जहां 2 सितंबर, 2007 को कार्य के दौरान उनका निधन हो गया था वही 21 सितंबर 2019 को मां कृष्णा पांडे का भी निधन हुआ। वही माता-पिता की इकलौती संतान होने की वजह से उन्होंने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था लेकिन वह विवाहित है। यह कहकर आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में निर्णय दिया गया था पुत्र न रहने पर विवाहित पुत्री सरकारी सेवक की मौत पर अनुकंपा की नौकरी पाने की हकदार होगी। इस मामले में दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मातृ पितृ के संतान के रूप में होने के कारण सरकारी सेवक के आश्रित की देखभाल की जिम्मेदारी पुत्र न होने की स्थिति में शादीशुदा पुत्री पर आती है। जिससे आश्रित के सामने भीषण आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न होती है। जब की अनुकंपा नियुक्ति का मूल उद्देश्य सरकारी सेवक की सेवा काल में हुई असामयिक मृत्यु के बाद अरशद परिवार के समक्ष उत्पन्न हुई भरण-पोषण की समस्या के निराकरण और उन्हें आर्थिक तंगी से बचाना है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह निर्णय लिया गया था।