भोपाल/ग्वालियर।
मध्यप्रदेश में अबतक 21 सीटों पर मतदान हो चुका है और बाकी आठ सीटों पर 19 मई को होना है। इसके बाद 23 मई को परिणाम घोषित किए जाएंगें। वही कई जिलों मे हुई बंपर वोटिंग ने बीजेपी-कांग्रेस की धड़कने तेज कर दी है। खास करके ग्वालियर लोकसभा की सीट पर।जहां इस बार वोटिंग का प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन सिंधिया समर्थक मंत्री और विधायक के इलाकों में विधानसभा की तुलना में वोटिंग कम हुई है।जिसको लेकर तरह तरह के सवाल उठ रहे है, वही इन सभी पर प्रत्याशी अशोक सिंह के फेवर में ठीक तरह से काम ना करने के आरोप लग रहे है। अशोक सिंह दिग्विजय समर्थक में आते है। अब सवाल ये है कि अगर कांग्रेस ग्वालियर सीट से जीत गयी तो सब सामान्य रहेगा, लेकिन हार गयी तो सीधे मंत्री और विधायकों पर सवाल उठेंगे और हार का ठीकरा सिंधिया के माथे पर फूटेगा।
दरअसल, इस बार ग्वालियर लोकसभा सीट पर 60 फीसदी मतदान हुआ जो 2014 को मुक़ाबले 8 फीसदी ज़्यादा है। 2014 में 52 फीसदी वोटिंग हुई थी जो 2019 में बढ़कर 60 फीसदी रही। इस बढ़े वोटिंग प्रतिशत के बावजूद इलाके के सिंधिया समर्थक मंत्री विधायक सवालों के घेरे में आ गए है। इसके पीछे कारण यह है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले कांग्रेस के मंत्रिय़ों औऱ विधायकों के इलाकों में वोटिंग परसेंटेज बढ़ने के बजाय 5 फीसदी तक नीचे हुआ है। इनमें मंत्री इमरती और विधायक मुन्ना लाल, मंत्री प्रद्युम्न और लाखन सिंह शामिल है। इमरती देवी के इलाके में विधानसभा में 68 फीसदी वोट पड़े थे लोकसभा में 63 फीसदी वोटिंग हुई, यहां भी 5 फीसदी वोट घटे मतलब 14 हजार वोट कम पड़े।वही विधायक मुन्ना लाल के इलाके में भी विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा में 4 फीसदी वोट कम पड़े, य़हां 54 फीसदी मतदान हुआ है विधानसभा में ये 58 फीसदी था।इसके अलावा मंत्री लाखन सिंह की भितरवार सीट पर विधानसभा में 72 फीसदी वोट पड़े थे। लोकसभा में 58 फीसदी वोटिंग हुई। यहां 14 फीसदी वोट घटे मतलब 35 हजार वोट कम पड़े। मंत्री प्रदुम्न की ग्वालियर सीट पर विधानसभा में 63 फीसदी वोट पड़े थे। लोकसभा में 58 फीसदी वोटिंग हुई। यहां 5 फीसदी वोट घटे मतलब 12 हजार वोट कम पड़े।
ऐसे में परिणाम से पहले पार्टी की धड़कने तेज हो गई है, यहां तक सिंधिया खेमे के इन मंत्री और विधायक पर दिग्विजय खेमे के कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह के लिए काम ना करने के भी आरोप लगने लगे है। आरोप है कि जितनी मेहनत मंत्री-विधायकों को जीत के लिए करनी चाहिए थी, उतनी उन्होंने नही की।ऐसे में अगर यहां कांग्रेस को हार मिलती है तो इसके जिम्मेदार ये मंत्री-विधायक होंगें।कही ना कही इनकी उदासीनता ही हार का कारण बनेगी, वही अगर कांग्रेस ग्वालियर सीट से जीत गयी तो सब सामान्य रहेगा, लेकिन अगर हार गयी तो सीधे मंत्री और विधायकों पर सवाल उठेंगे और सिंधिया पर हार का ठीकरा फूटेगा।वही मुख्यमंत्री कमलनाथ वोटिंग को लेकर पहले ही मंत्री-विधायकों को चेतावनी दे चुके है।
बता दे कि ग्वालियर लोकसभा सीट पर अबतक बीजेपी का कब्जा रहा है, वर्तमान में यहां से केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सांसद है, लेकिन विधानसभा में बढ़ते विरोध और करारी हार के चलते उन्हें मुरैना से मैदान में उतारा गया है और ग्वालियर से विवेक शेजवलकर को उम्मीदवार बनाया गया है, वही कांग्रेस ने दिग्विजय समर्थक अशोक सिंह पर दांव खेला है। विधानसभा में बदले समीकरणों के बाद कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि जीत उन्हें ही मिलेगी, लेकिन वोटिंग के बढ़े प्रतिशत और मंत्रियों-विधायकों के इलाकों में घटे प्रतिशत ने जीत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए है।अब देखना दिलचस्प होगा कि जीत किसको मिलती है।