One Nation One Election : ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट की मंजूरी, शीतकालीन सत्र में संसद में पेश होगा बिल!

वन नेशन वन इलेक्शन (एक राष्ट्र एक चुनाव) का प्रस्ताव एक ऐसी चुनावी व्यवस्था की वकालत करता है जिसमें भारत में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया में समय और संसाधनों का काफी उपयोग होता है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य इन संसाधनों और समय की बचत करना, प्रशासनिक स्थिरता को बढ़ावा देना और चुनावों की आवृत्ति को कम करना है।

One Nation One Election

One Nation One Election : ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट के बाद इसे अब कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। संभावना जताई जा रही है कि आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार ‘वन नेशन वन इलेक्शन बिल’ संसद में पेश करेगी।

कैबिनेट द्वारा इस प्रस्ताव को सहमति दिए जाने का निर्णय भारत की संसदीय व्यवस्था में एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है। प्रधानमंत्री मोदी लंबे समय से ‘एक देश एक चुनाव’ के समर्थन करते रहे हैं। 15 अगस्त को लाल क़िले से अपने भाषण में भी उन्होंने इसका ज़िक्र किया था और कहा था कि बार बार होने वाले चुनाव देश की प्रगति में बाधा पहुँचा रहे हैं।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी

भारत सरकार ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र एक चुनाव) के ऐतिहासिक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह निर्णय बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया, जिसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। सूत्रों के अनुसार, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद, इस प्रस्ताव को संसद में पेश किया जाएगा और इस पर व्यापक चर्चा और बहस की जाएगी। अगर संसद से इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलती है तो ये भारत की चुनावी प्रणाली में एक ऐतिहासिक बदलाव होगा।

मंजूरी के बाद आगे की प्रक्रिया

जानकारी के अनुसार, अब सरकार इस प्रस्ताव को संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक के रूप में पेश करेगी। संसद से मंजूरी मिलने के बाद, यह व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में संशोधन आवश्यक होगा क्योंकि लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल अलग-अलग होते हैं। इसके लिए सरकार को व्यापक समर्थन और सहमति की आवश्यकता होगी, खासकर राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों से।

क्या हैवन नेशन वन इलेक्शन

इस नई व्यवस्था के तहत, लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक ही समय पर कराने की योजना है। वर्तमान में भारत में केंद्र और राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे बार-बार चुनावी प्रक्रिया में देश की प्रशासनिक मशीनरी और संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य चुनावों की इस प्रक्रिया को सरल बनाना और चुनावी खर्च में कमी लाना है।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक ही समय पर कराने की योजना है। ये विचार भारतीय लोकतंत्र के बेहतर प्रबंधन और चुनावी खर्चों में कटौती के उद्देश्य से पेश किया गया है। वर्तमान में भारत में केंद्र और राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे बार-बार चुनावी प्रक्रिया में देश की प्रशासनिक मशीनरी और संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य चुनावों की इस प्रक्रिया को सरल बनाना और चुनावी खर्च में कमी लाना है।

इस योजना के प्रमुख लाभ

  1. चुनावी खर्च में कमी: विभिन्न समय पर चुनाव कराए जाने से सरकारों और राजनीतिक दलों पर भारी खर्च का बोझ पड़ता है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के तहत एक साथ चुनाव कराने से यह खर्च काफी कम हो जाएगा।
  2. प्रशासनिक स्थिरता: बार-बार चुनावों के कारण सरकारें निर्णय लेने और नीतिगत कार्यों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती हैं। एक साथ चुनाव होने से स्थिरता बनेगी और सरकारें अपने कार्यकाल के दौरान नीतिगत सुधारों पर अधिक ध्यान दे सकेंगी।
  3. सुरक्षा और संसाधनों की बचत: हर बार चुनाव कराने के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है। एक साथ चुनाव कराने से सुरक्षा बलों और संसाधनों का अधिक समुचित उपयोग होगा।

विपक्ष की राय और चुनौतियां

हालांकि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विचार फायदेमंद दिखता है, परंतु इसके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने इसे लेकर कहा था कि एनडीए के लिए ये लागू कर पाना मुमकिन नहीं है और इसे लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पाँच संशोधन करने होंगे और पीएम मोदी के पास इसके लिए पर्याप्त संख्या नहीं है। वहीं, कई क्षेत्रीय दलों और राजनीतिक विशेषज्ञ भी इसे लेकर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि इससे क्षेत्रीय मुद्दों को अनदेखा किया जा सकता है और छोटे दलों को नुकसान हो सकता है। साथ ही, चुनावी प्रक्रिया को एक साथ कराने के लिए संवैधानिक संशोधन और राज्य विधानसभाओं का समय-समाप्ति सिंक्रोनाइज करना एक बड़ी चुनौती होगी। फ़िलहाल, कैबिनेट से इसे मंज़ूरी मिल गई है जो इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक बड़ा कदम है।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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