भोपाल। रिश्वतखोरी और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली लोकायुक्त को अब सरकार ‘कमज़ोर’ करने की तैयारी में है। राज्य सरकार लोकायुक्त की जगह भ्रष्टाचार विरोधी दस्ता तैयार करने की तैयारी में है। जो सीधे प्रदेश के डीजीपी के निर्देश पर काम करेगा इसका नियंत्रण भी डीजीपी के हाथों में रहेगा।
दरअसल, राज्य सरकार लोकायुक्त स्पेशल पुलिस एस्टेबलिशमेंट (एसपीई) बदलाव करने पर विचार कर रही है। इसकी स्थापना लोकायुक्त अधिनियम, 1982 के तहत की गई थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार एसपीई की जगह भ्रष्टाचार विरोधी शाखा तैयार करने का मूड बना रही है। जो प्रदेश के डीजीपी के निर्देश पर काम करेगी। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों में कार्रवाई होने पर भी डीजीपी पर नियंत्रण रखने के लिए ऐसा किया जा रहा है। लेकिन ऐसा करना तभी मुमकिन है जब विधानसभा में इस एक्ट में बदलाव के लिए नया बिल लाया जाा सके। राज्य सरकार आगामी बजट सत्र में बिल लाने की तैयारी में है। इस मसले पर मुख्यमंत्री कमलनाथ से प्रथमिक चर्चा भी की जी चुकी है।
लोकायुक्त के पास हैं ये अधिकार
फिलहाल लोकायुक्त के पास इस एक्ट ��े तहत खास अधिकार हैं। इनमें लोकायुक्त उन पुलिस केस में सीधे हस्तक्षेप कर सकती है जो छापे, भ्रष्टाचार से संबंधित मामले, और भ्रष्टाचार संबंधित मामलों में चार्जशीट पेश करने के होते हैं। अगर लोकायुक्त से यह ताकत छीन ली जाए तो लोकायुक्त सिर्फ एक सलाह देने वाले संस्थान के तौर पर काम कर पाएगी। कार्रवाई करने का अधिकार फिर उसके पास नहीं रहेगा।
सरकार और लोकायुक्त के बीच विवाद कांग्रेस के सत्ता में आने और लोकायुक्त एडीजी मधुकुमार को पदस्त करने के साथ ही शुरू हो गया था। कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद ही एडीजी रवि गुप्ता का ट्रांसफर कर दिया था। लोकायुक्त ने तब सरकार को एक पत्र लिखा था, लेकिन मुख्यमंत्री और लोकायुक्त की बैठक के बाद मामला शांत हो गया था। एसपीई में बदलाव करने का एक और कारण आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को अधिक शक्तिशाली बनाना बताया जाता है। EOW सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत आता है। अगर एसपीई में बदलाव किया जाता है तो एंटी करप्शन शाखा डीजीपी के पास रहेगी जिस पर सीधा नियंत्रण सरकार का रहेगा।