भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। पूरे देश सहित मध्य प्रदेश (madhya pradesh) में कोरोना (corona) की दूसरी लहर ने भयंकर आतंक मचाया था। इस काल में कितनी ही घर पूरी तरह से तबाह हो गए। कई घरों में उपार्जन करने वाले माता-पिता की आकस्मिक मृत्यु हो गई। प्रदेश के ऐसे प्रभावित बच्चों की देखभाल के लिए शिवराज सरकार (shivraj government) ने नई व्यवस्था शुरू की। मुख्यमंत्री कोविड-19 बाल सेवा योजना (Chief Minister covid-19 Child Service Scheme) के शुरू होने से लेकर अब तक कई हितग्राहियों को इसका लाभ मिल चुका है। प्रदेश के कई जिलों में ऐसे केसों का तत्काल प्रभाव से निराकरण किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (shivraj singh chauhan) ऐसे सभी योजनाओं पर नजर बनाए हुए हैं।
यदि आंकड़ों की बात करें तो 21 मई 2021 को शुरू हुई मुख्यमंत्री कोविड-19 बाल सेवा योजना में अब तक प्रदेश के एक हजार एक बार हितग्राहियों को इस योजना का लाभ मिल चुका है। हितग्राहियों को आर्थिक एवं खाद्य सुरक्षा प्रदान की जा रही है साथ ही साथ शिवराज सरकार इन वाली लुगाइयों की शिक्षा की जिम्मेदारी भी उठा रही है।
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झुंझुनू में अब तक सबसे ज्यादा इस योजना पर कार्य हुए हैं उसमें जबलपुर 58, बालाघाट 50, ग्वालियर जिले में 40, छिंदवाड़ा 40, राजगढ़ 38, रतलाम 37, टीकमगढ़ 16 खंडवा- खरगोन 17, अशोकनगर 10, मंडला 21, भोपाल सहित नीमच, बड़वानी, देवास, रायसेन, बेतूल गुना, अलीराजपुर, नरसिंहपुर, सागर, आगर मालवा, रीवा, मुरैना, सिंगरौली डिंडोर, विदिशा, झाबुआ, दतिया, हरदा, उमरिया, उज्जैन, बुरहानपुर, शहडोल, शिवनी, इंदौर, अनूपपुर, सीहोर, छतरपुर शामिल है।
ज्ञात हो कि इस योजना के तहत 18 वर्ष से कम हितग्राही को चिन्हित कर उनके संरक्षक और बच्चे के संयुक्त खाते में और 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद हितग्राही के व्यक्तिगत खाते में राशि जमा की जाती है। इसके अलावा प्रत्येक बालिका ही को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत निशुल्क मासिक राशन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। साथ ही उन्हें स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, शासकीय विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में निशुल्क शिक्षा प्रदान करवाई जा रही है।
सीएम शिवराज ने कहा था कि कोविड-19 बाल सेवा योजना के हितग्राहियों को 5 हजार रूपये प्रतिमाह, भोजन के लिए राशन की व्यवस्था, शिक्षा के लिए भारत में कहीं भी शिक्षा का वहन राज्य सरकार करेगी।इसके अलावा भी यदि अन्य कोई आवश्यकता होगी, तो कलेक्टर्स उनकी देखभाल करेंगे। बच्चों की देखभाल के लिए हर जिले में एक पालक अधिकारी नियुक्त किया जाए।