भोपाल।
मध्यप्रदेश(madhyapradesh) में सत्ता परिवर्तन और कोरोना(corona) संकटकाल के बीच पिछले 3 माह से मंत्रिमंडल(cabinet) का विस्तार रुका हुआ है। मंत्रिमंडल का विस्तार जैसे-जैसे टल रहा है वैसे वैसे मंत्री(minister) बनने के दावेदारों के सामने कई तरह के सवाल सामने आ रहे हैं। वहीँ उनका सब्र भी अब जवाब देता नजर आ रहा है। इसी बीच लगातार मंत्रिमंडल के विस्तार की अटकलों पर विराम लगता दिखाई दे रहा है। लेकिन मंत्री पद के दावेदार पूर्वमंत्री(former minister) लगातार सक्रिय हैं और बीजेपी(BJP) के दिग्गजों से लगातार संपर्क में हैं जिसके बाद बुधवार को गोपाल भार्गव(gopal bhargava), गौरीशंकर बिसेन(gaurishankar vishen) और विजय शाह(vijay shah) की मुलाकात के बाद अब पूर्व मंत्रियों ने दावेदारी मजबूत करने के लिए परफॉर्मन्स(performance) की बात शुरू कर दी है।
दरअसल बुधवार को पूर्व मंत्रियों ने अपना दावा मज़बूत करने के लिए परफॉर्मेंस के आधार पर मंत्री बनाए जाने की मांग उठा दी है। पूर्वमंत्री सुरेंद्र पटवा(surendra patwa) ने एक मीडिया चैनल(media channel) से बात करते हुए कहा कि विधायकों के परफॉरमेंस पर उनको मंत्री पद में वरीयता देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार करना सीएम शिवराज(CM Shivraj) का विशेषाधिकार है। लेकिन मंत्री बनाने का आधार कहीं ना कहीं विधायकों की परफॉर्मेंस होगा। इस मुद्दे के उछाले जाने के साथ ही कई तरह के अटकले सामने आ रही है। वहीँ मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया(scindia) समर्थक पूर्व मंत्रियों को मंत्री बनाया जाना तय है। जिसके बाद बीजेपी विधायकों(BJP mlas) के पत्ते साफ़ होने तय है। यही वजह है कि पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा ने परफॉर्मेंस का मुद्दा उछाल दिया है।.
माना जा रहा कि इस मामले के बाद अब शिवराज के लिए इस मुद्दे को सुलझाना बेहद कठिन है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां से तीन दावेदार मंत्री बनने की कतार में हैं। जिनमें एक सिंधिया समर्थक दिग्गज प्रभुराम चौधरी के अलावा एक बीजेपी उम्मीदवार है। वहीँ मंत्रिमंडल का विस्तार इसीलिए टल रहा था क्योंकि कई नामों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई थी। शिवराज चाहते थे कि उनके समर्थित चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल हो लेकिन केंद्रीय नेतृत्व उसके लिए तैयार नहीं था। अब जब शिवराज दिल्ली जाएंगे तब आमने-सामने बैठकर इस बात की सहमति बनाने के प्रयास किए जाएंगे कि आखिरकार किन चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह मिले। इस बीच अब देखना दिलचस्प है कि शिवराज रायसेन के इस सियासी खेल को कैसे सुलझाते हैं।