हिमाचल प्रदेश में साइबर ठग अब लोगों को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर निशाना बना रहे हैं। राज्य सीआईडी की साइबर क्राइम विंग ने इसे तेजी से फैलता गंभीर अपराध बताते हुए जनता को सतर्क रहने की सलाह दी है। पुलिस के अनुसार, जनवरी से अब तक प्रदेश में डिजिटल अरेस्ट से जुड़ी पांच एफआईआर दर्ज की गई हैं। इन मामलों में पीड़ितों से कुल लगभग 2.42 करोड़ रुपये की ठगी हो चुकी है। अधिकारियों ने साफ कहा है कि लोग किसी भी संदिग्ध लिंक पर क्लिक न करें, केवल सुरक्षित एप्लिकेशन ही डाउनलोड करें और ऑनलाइन खातों को टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन से सुरक्षित करें। साथ ही, किसी भी संदिग्ध घटना की तुरंत नजदीकी साइबर क्राइम थाने में शिकायत दर्ज करवाने की अपील की गई है।
पुलिस जांच में सामने आया है कि साइबर अपराधी वीडियो कॉल, फोन कॉल, सोशल मीडिया और ईमेल के जरिए लोगों को डराकर ठगते हैं। वे खुद को जज, पुलिस या सीबीआई अधिकारी बताकर पीड़ित को यह यकीन दिलाते हैं कि वह किसी गंभीर अपराध जैसे मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स तस्करी या बलात्कार के मामले में फंसा हुआ है। ठग वीडियो कॉल के दौरान नकली पुलिस वर्दी, पहचान पत्र और सरकारी ऑफिस जैसा बैकग्राउंड दिखाकर अपनी पहचान को पुख्ता करने की कोशिश करते हैं। इस तरह वे पीड़ित को मानसिक दबाव में डालते हैं और फिर पैसे वसूलते हैं।
हिमाचल में बढ़ा डिजिटल अरेस्ट का खतरा
विशेषज्ञों के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट एक संगठित साइबर घोटाला है। इसमें अपराधी दावा करते हैं कि पीड़ित का नाम किसी गैरकानूनी गतिविधि में दर्ज है और उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके बाद पीड़ित को झूठे मामलों से बचाने के नाम पर घर से बाहर न निकलने, किसी से बातचीत न करने और केवल ऑनलाइन निर्देशों का पालन करने के लिए कहा जाता है। इस स्थिति को ही डिजिटल अरेस्ट कहा जाता है। दरअसल, अपराधी झूठे केस को सुलझाने के बहाने बैंक डिटेल्स, गोपनीय जानकारी या सीधे पैसों की मांग करते हैं।
पुलिस का कहना है कि इस तरह के मामलों से बचने का सबसे बड़ा उपाय जागरूकता है। यदि किसी को इस तरह की कॉल, ईमेल या वीडियो कॉल मिलती है तो वह घबराए नहीं और तुरंत इसकी पुष्टि अधिकृत स्रोतों से करे। कोई भी सरकारी एजेंसी फोन या वीडियो कॉल पर किसी को गिरफ्तार नहीं करती और न ही पैसे की मांग करती है। इसलिए ऐसी ठगी से बचने के लिए सावधानी बरतना और तुरंत शिकायत दर्ज कराना बेहद जरूरी है।





