हिमाचल प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने खुलासा किया कि 31 जुलाई 2025 तक प्रदेश पर कुल 98,182 करोड़ रुपये का कर्ज है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए राज्य सरकार ने ऋण चुकाने को लेकर बजट में प्रावधान किया है। इसके तहत 4243.57 करोड़ रुपये मूलधन चुकाने और 6738.85 करोड़ रुपये ब्याज अदायगी पर खर्च होंगे। भरमौर से भाजपा विधायक डॉ. जनक राज के सवाल के लिखित जवाब में मुख्यमंत्री ने बताया कि जुलाई 2025 में लिया गया कर्ज भी विकासात्मक कार्यों में उपयोग किया जा रहा है। यह ऋण सरकार ने 22 वर्ष की लंबी अवधि को ध्यान में रखकर लिया है, ताकि उसकी चुकौती का बोझ एकसाथ न पड़े।
हिमाचल पर 98 हजार करोड़ का कर्ज
सीएम ने कहा कि राज्य की वित्तीय स्थिति काफी हद तक केंद्र सरकार पर निर्भर है। प्रदेश के अपने संसाधन सीमित होने के कारण बजट का अधिकांश हिस्सा केंद्र से मिलने वाले अनुदान और हिस्सेदारी पर आधारित है। 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद यह निर्भरता और बढ़ गई, क्योंकि पहले राज्य को मिलने वाले कई कर अब जीएसटी में शामिल हो गए हैं। जीएसटी लागू होने से प्रदेश को वित्तीय हानि हुई, जिसकी भरपाई केंद्र ने केवल पांच साल तक की। लेकिन 1 जुलाई 2022 से यह बंद हो गई, जिससे हिमाचल के राजस्व पर असर पड़ा।
मुख्यमंत्री ने बताया कि 15वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार हिमाचल को राजस्व घाटा अनुदान भी मिलता रहा है। वित्त वर्ष 2020-21 में यह अनुदान 11,431 करोड़ रुपये था। हालांकि, अगले वर्षों में इसमें तेजी से कमी आई और वित्त वर्ष 2025-26 में यह घटकर केवल 3257 करोड़ रुपये रह गया है। इस कमी के चलते प्रदेश सरकार को अपने वित्तीय स्रोतों से अधिक आय जुटाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
प्रदेश का ऋण भार आने वाले महीनों में एक लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने कई उपाय शुरू किए हैं। इनमें आंतरिक संसाधनों से आय बढ़ाना और गैरजरूरी खर्चों में कटौती करना शामिल है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा कि सरकार का लक्ष्य है कि धीरे-धीरे कर्ज पर निर्भरता कम की जाए और विकास कार्यों के लिए अधिकतर संसाधन प्रदेश के अपने राजस्व स्रोतों से जुटाए जाएं।





