हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मई 2025 में राज्य सरकार की 1 अप्रैल 2015 की अधिसूचना को रद्द कर दिया था, जिसमें भूमि अधिग्रहण मुआवजे के लिए “फैक्टर-वन” लागू करने का प्रावधान था। इस अधिसूचना के तहत प्रभावितों को उनकी जमीन का केवल दोगुना मूल्य मिलता था, जबकि “फैक्टर-टू” लागू होने पर चार गुना मुआवजा मिल सकता था। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि यह अधिसूचना ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के साथ अन्याय है और यह राइट टू फेयर कंपेनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विज़िशन रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट, 2013 की भावना के खिलाफ है। हाई कोर्ट के इस फैसले से किसानों को चार गुना मुआवजा मिलने की उम्मीद बंधी थी।
चार गुना मुआवजा देने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक
हालांकि, प्रदेश सरकार ने इस आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन.के. सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार को एकतरफा स्थगन आदेश जारी कर दिया। प्रभावित किसानों का कहना है कि यह कदम सरकार की उस मानसिकता को दर्शाता है, जिसमें वह किसानों को उनकी जमीन और घरों का उचित मुआवजा देने से बचना चाहती है।
भूमि अधिग्रहण प्रभावित मंच के संयोजक जोगिंद्र वालिया ने भाजपा और कांग्रेस दोनों पर वादाखिलाफी के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि 2017 में भाजपा ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर “दो फैक्टर” लागू कर चार गुना मुआवजा देंगे, लेकिन जयराम सरकार ने इसे लागू नहीं किया। वहीं, कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनाव में यही वादा दोहराया, पर सत्ता में आने के बाद न तो कोई बैठक हुई और न ही फैसला, उल्टे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगवा दी।
प्रभावित किसानों ने स्पष्ट किया है कि अगर हाई कोर्ट का फैसला लागू होता, तो उन्हें बड़ी राहत मिलती। अब सरकार के रुख से उनकी निराशा और गहरी हो गई है। मंच ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में फोरलेन और अन्य परियोजनाओं से प्रभावित किसान मिलकर न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस सरकार को इस मुद्दे का राजनीतिक खामियाज़ा आगामी चुनावों में भुगतना पड़ेगा।





