हिमाचल प्रदेश में स्कूलों में बढ़ते नशे के मामलों पर रोक लगाने के लिए एक नया तरीका अपनाने की तैयारी शुरू हो गई है। हिमाचल पुलिस की सीआईडी ने शिक्षा विभाग को एक ऐसा मेकैनिज्म सुझाया है, जिसके तहत यूरिन आधारित रैपिड ड्रग टेस्टिंग किट का इस्तेमाल किया जाएगा। इस किट से आसानी से यह पता लगाया जा सकेगा कि कौन सा छात्र या छात्रा ड्रग्स का सेवन कर रहा है। शिक्षा विभाग ने सभी जिलों के उपनिदेशकों को इस संबंध में पत्र भेजकर उनकी राय मांगी है। विभाग का मानना है कि इस कदम से उन छात्रों को समय रहते बचाया जा सकेगा, जो हाल ही में नशे की चपेट में आए हैं।
मेकैनिज्म के तहत सुझाव दिया गया है कि अगर किसी शिक्षक को किसी छात्र पर नशे के सेवन का संदेह होता है तो वह स्थानीय पुलिस की मदद से इस टेस्ट को करा सकता है। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में पुलिस केस दर्ज करने या छात्र को हिरासत में लेने की आवश्यकता नहीं होगी। इसका उद्देश्य केवल बच्चे के करियर को सुरक्षित रखना और उसे नशे की लत से बाहर निकालना है। इस तरह, स्कूल स्तर पर नशा रोकथाम के प्रयासों को और मजबूत किया जाएगा।
ड्रग्स की पहचान के लिए नया फॉर्मूला
शिक्षा विभाग ने जिलों से यह भी जानना चाहा है कि इस मेकैनिज्म को लागू करने में कौन-कौन सी व्यावहारिक दिक्कतें आ सकती हैं। इन सुझावों के आधार पर आगे की रणनीति तय की जाएगी। विभाग ने तय किया है कि इस विषय पर एक राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इस कार्यशाला में सीआईडी अधिकारी भी मौजूद रहेंगे और यह स्पष्ट किया जाएगा कि टेस्टिंग किट कहां उपलब्ध होंगी, उन्हें कौन संभालेगा और टेस्टिंग की प्रक्रिया क्या होगी।
राज्य में लगातार बढ़ रहे ड्रग्स मामलों को देखते हुए सरकार और विभाग अब स्कूल स्तर पर ही रोकथाम की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। निदेशालय का मानना है कि यह यूरिन बेस्ड टेस्ट आसान और व्यावहारिक है, इसलिए इसे लागू करने में ज्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए। कार्यशाला के बाद इस योजना को और स्पष्ट दिशा मिलेगी और स्कूलों में ड्रग्स की पहचान और रोकथाम की दिशा में यह पहल एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।





