हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने साफ किया है कि संविदा पर कार्यरत महिला कर्मचारियों को भी मातृत्व अवकाश का पूरा लाभ मिलना चाहिए और केवल नियमितीकरण के समय मेडिकल फिटनेस प्रमाण-पत्र देने के आधार पर उनके अधिकार कम नहीं किए जा सकते। यह फैसला जस्टिस संदीप शर्मा ने कामिनी शर्मा की याचिका पर सुनाया। अदालत ने कहा कि मेडिकल फिटनेस प्रमाण-पत्र देना कार्यभार ग्रहण करना नहीं माना जाएगा और मातृत्व अवकाश की अवधि घटाने का कोई औचित्य नहीं बनता।
संविदा कर्मियों को भी मिलेगा मैटरनिटी लीव का लाभ
मामला सितंबर 2018 का है, जब कामिनी शर्मा को राजकीय प्राथमिक विद्यालय गेटर में संविदा आधार पर जेबीटी शिक्षक नियुक्त किया गया था। अगस्त 2021 में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया और 180 दिन के मातृत्व अवकाश पर चली गईं। इसी दौरान 21 अक्टूबर 2021 को शिक्षा विभाग ने उनकी सेवाएं नियमित कर दीं। इसके लिए उन्होंने अगले दिन स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र और कार्यभार ग्रहण रिपोर्ट जमा की, जिसमें उल्लेख था कि वह मातृत्व अवकाश के दौरान ही नियमित नौकरी स्वीकार कर रही हैं। उस समय विभाग ने कोई आपत्ति नहीं जताई।
लेकिन दो महीने बाद 13 दिसंबर 2021 को विभाग ने 23 अक्टूबर 2021 से मातृत्व अवकाश रद्द करते हुए उसे असाधारण अवकाश घोषित कर दिया। विभाग का तर्क था कि स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र जमा करना ड्यूटी ज्वाइन करने के बराबर है। इस फैसले से परेशान होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने माना कि कामिनी शर्मा ने मातृत्व अवकाश के बीच कार्यभार ग्रहण नहीं किया था, बल्कि पहले से स्वीकृत अवकाश की निरंतरता में नियमितीकरण स्वीकार किया था। इसलिए विभाग का आदेश पूरी तरह गलत है।
हाईकोर्ट ने मातृत्व अवकाश रद्द करने का आदेश निरस्त कर दिया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि छह हफ्तों के भीतर याचिकाकर्ता का वेतन जारी किया जाए। यदि भुगतान में देरी होती है तो छह फीसदी ब्याज के साथ राशि दी जाएगी। अदालत ने यह भी दोहराया कि मातृत्व लाभ कोई रियायत नहीं, बल्कि संवैधानिक और कानूनी अधिकार है, जिसका उद्देश्य मां और बच्चे दोनों की सुरक्षा करना है। हाल ही में इसी पीठ ने अर्चना शर्मा मामले में भी ऐसा ही फैसला दिया था, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि मातृत्व अवकाश से संबंधित अधिकार नीतिगत शर्तों से ऊपर हैं।





