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Thu, Dec 18, 2025

Amrita Pritam : अधूरे इश्क की मुकम्मल दास्तां, नवरोज ने पूछा था ‘क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं’

Written by:Shruty Kushwaha
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Amrita Pritam : अधूरे इश्क की मुकम्मल दास्तां, नवरोज ने पूछा था ‘क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं’

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। जब भी इश्क़ और कविताओं की बात होगी, अमृता प्रीतम का ज़िक्र सबसे पहले आएगा। अमृता का ज़िक्र होगा तो साहिर लुधियानवी का नाम आएगा, साहिर के साथ ही चले आएंगे इमरोज़ भी। ये कहानी एक कवयित्री की ही नहीं..ये एक दास्तां है ऐसे इश्क़ की भी जो दुनियावी रस्मों के हिसाब से मुकम्मल नहीं हो पाया। और एक ऐसा इश्क़ जो इमरोज़ के रूप में हमेशा उनका साया बनकर रहा। यहां बात होगी एक ऐसी औरत की..जिसकी सफ़हों  में नारीवाद की वो धारणाएं है जिससे जाने कितनी क्रांति की लपटें निकलती हैं। एक इंटरव्यू में उन्होने कहा था- स्त्री की शक्ति से इंकार करने वाला आदमी स्वयं की अवचेतना से इनकार करता है। एक खुदमुख़्तार स्त्री की ये आवाज़ दरअसल हजारों लाखों स्त्रियों की साझा ध्वनि है। आज हम उनकी 103वीं जयंती मना रहे हैं।

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31 अगस्त 1919 को अमृता प्रीतम का का जन्म ब्रिटिश भारत में गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान में ) में हुआ था। पंजाबी अदब के सबसे मशहूर और सम्माननीय लेखकों में उनका नाम पहली कतार में है। उन्होने फिक्शन, नॉन फिक्शन, कविताएं, नज़्में, निबंध और आत्मकथा लिखी है। उनकी कविताओं का हिंदी, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। जब वे सिर्फ 16 साल की थीं और उनकी शादी लाहौर के अनारकली बाजार के एक व्यापारी और एक संपादक के बेटे प्रीतम सिंह से हुई थी। कालांतर में ये शादी भले ही टूट गई हो लेकिन अमृता के नाम के साथ प्रीतम ताउम्र जुड़ा रहा। प्रीतम के साथ वो करीब 33 साल रहीं लेकिन 1960 में ये रिश्ता खत्म हो गया।

अपनी लेखनी से इतर उनका नाम किसी और चीज़ के लिए लिया जाता है तो वो है मुहब्बत। उनका और साहिर लुधियानवी का इश्क़ अलहदा था, दुनिया की रस्मों से परे था। पहली बार ये दोनों 1944 में लाहौर के प्रीत नगर के एक मुशायरे में मिले थे। पहली की मुलाक़ात में दोनों के बीच कुछ घटा, लेकिन किसी ने इसका इज़हार नहीं किया। अमृता ने अपनी आत्मकथा रसीटी टिकिट में लिखा भी है कि वे दोनों घंटों खामोशी से बैठे रहे। किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा, लेकिन जाते हुए साहिर उन्हें एक नज़्म देते गए। इसके बाद उनमें खतों का सिलसिला चल निकला और फिर धीरे धीरे मुलाकातें भी होने लगी। अमृता और साहिर का रिश्ता सदा के लिए था लेकिन फिर भी किसी अंजाम तक नहीं पहुंचा।

भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद साहिर मुंबई पहुंच गए और अमृता दिल्ली में बस गई। साहिर की ज़िंदगी में उनके अलावा भी अलग अलग समय पर कई स्त्रियां आई..लेकिन अमृता की जगह कोई नहीं ले सका। कहा जाता है कि भारत आने के बाद साहिर की जिंदगी में फिर किसी और की आमद हुई और ये उन दोनों की दूरी की वजह बन गई। तभी अमृता के जीवन में चित्रकार इमरोज़ आए। प्रेम बिना शर्त के, बिना स्पर्श के भी किया जा सकता है..इसकी मिसाल है इमरोज़। साहिर और अमृता के प्रेम को प्लेटॉनिक कहा जा सकता है तो अमृता इमरोज़ के बीच प्रेम का अनकहा अपरिभाषित रिश्ता था। वे एक दूसरे के साथ रहते थे लेकि इतने आज़ाद कि किसी के लिए कोई बंधन नहीं। इमरोज़ को पता था कि अमृता साहिर से प्रेम करती हैं, लेकिन उन दोनों के बीच ये बात कभी आड़े नहीं आई। ये दोनों एक साथ रहने लगे, लेकिन इन्होने शादी नहीं की।

यूं तो साहिर-अमृता-इमरोज़ के तमाम किस्से हैं लेकिन एक बात जो खासी मशहूर है..ये किस्सा ख़ुद साहिर ने बताया था। उन्होने बताया कि अमृता चाहती थी उनका बच्चा साहिर के जैसा दिखे। वे हमेशा से जादू, तिलस्म, ज्योतिष में विश्वास रखती थीं और उनका मानना था कि वो जिसका खयाल करेंगी, जिसका तसव्वुर करेंगी, होने वाले बच्चे की शक्ल उसके जैसी हो जाएगी। कई लोगों का मानना था कि उनका बेटा साहिर के जैसा दिखता है और खुद उसने अमृता से पूछा था कि मां क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं। ये बात तबकि है तब उनका बेटा नवरोज 13 साल का था। अमृता ने इसके जवाब में कहा कि -बेटा, साहिर तो मुझे भी बहुत पसंद हैं लेकिन अगर ये सच होता तो मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी होती।