Amrita Pritam : अधूरे इश्क की मुकम्मल दास्तां, नवरोज ने पूछा था ‘क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं’

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। जब भी इश्क़ और कविताओं की बात होगी, अमृता प्रीतम का ज़िक्र सबसे पहले आएगा। अमृता का ज़िक्र होगा तो साहिर लुधियानवी का नाम आएगा, साहिर के साथ ही चले आएंगे इमरोज़ भी। ये कहानी एक कवयित्री की ही नहीं..ये एक दास्तां है ऐसे इश्क़ की भी जो दुनियावी रस्मों के हिसाब से मुकम्मल नहीं हो पाया। और एक ऐसा इश्क़ जो इमरोज़ के रूप में हमेशा उनका साया बनकर रहा। यहां बात होगी एक ऐसी औरत की..जिसकी सफ़हों  में नारीवाद की वो धारणाएं है जिससे जाने कितनी क्रांति की लपटें निकलती हैं। एक इंटरव्यू में उन्होने कहा था- स्त्री की शक्ति से इंकार करने वाला आदमी स्वयं की अवचेतना से इनकार करता है। एक खुदमुख़्तार स्त्री की ये आवाज़ दरअसल हजारों लाखों स्त्रियों की साझा ध्वनि है। आज हम उनकी 103वीं जयंती मना रहे हैं।

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31 अगस्त 1919 को अमृता प्रीतम का का जन्म ब्रिटिश भारत में गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान में ) में हुआ था। पंजाबी अदब के सबसे मशहूर और सम्माननीय लेखकों में उनका नाम पहली कतार में है। उन्होने फिक्शन, नॉन फिक्शन, कविताएं, नज़्में, निबंध और आत्मकथा लिखी है। उनकी कविताओं का हिंदी, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। जब वे सिर्फ 16 साल की थीं और उनकी शादी लाहौर के अनारकली बाजार के एक व्यापारी और एक संपादक के बेटे प्रीतम सिंह से हुई थी। कालांतर में ये शादी भले ही टूट गई हो लेकिन अमृता के नाम के साथ प्रीतम ताउम्र जुड़ा रहा। प्रीतम के साथ वो करीब 33 साल रहीं लेकिन 1960 में ये रिश्ता खत्म हो गया।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।