Chhoti Diwali : आज छोटी दिवाली है जिसे नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या काली चौदस भी कहा जाता है। लक्ष्मी पूजा या दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है। इसका धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन ये पर्व सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं से जुड़ा हुआ है। इसके पीछे कई अर्थ, मान्यताएँ और पौराणिक कहानियां हैं।
यह दिन विशेष रूप से भगवान कृष्ण, यमराज और देवी काली की कथाओं से जुड़ा हुआ है। ये बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। लोग अपने घरों की सफाई और सजावट करते हैं और दीप जलाते हैं। रूप चौदस के अवसर पर लोग उबटन लगाकर स्नान करते हैं जिससे स्वास्थ्य और सुंदरता में वृद्धि होती है।
छोटी दिवाली से जुड़ी कथाएं-परंपराएं
छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी कहा जाता है क्योंकि यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन को रूप चौदस भी कहा जाता है। छोटी दिवाली का पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह आत्मिक और सामाजिक जागरूकता का प्रतीक भी है। यह हमें अपने भीतर की बुराइयों से लड़ने, व्यक्तिगत और सामूहिक स्वच्छता का ध्यान रखने और एक-दूसरे के साथ प्रेम और एकता का संदेश देता है। इस पर्व से कई कहानियां और परंपराएं जुड़ी हुई हैं।
1. नरकासुर वध की कथा : प्रमुख पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राज नरकासुर ने देवताओं और ऋषियों को सताना शुरू कर दिया था। उसने 16,000 कन्याओं का अपहरण कर लिया था और उनके राज्य में भय और आतंक का साम्राज्य था। भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया और सभी कन्याओं को मुक्त किया। माना जाता है कि नरकासुर का वध अश्विन महीने की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। इस घटना की स्मृति में लोग छोटी दिवाली मनाते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाते हैं।
2. रूप चौदस की परंपरा : छोटी दिवाली को रूप चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से रूप और सौंदर्य की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन तेल और उबटन से स्नान करने से सौंदर्य में वृद्धि होती है और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। लोग इस दिन विशेष सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करते हैं और नए वस्त्र धारण करते हैं।
3. यमराज की पूजा : नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और व्यक्ति को स्वास्थ्य और लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। कई लोग इस दिन दीप जलाकर अपने घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखते हैं, जिसे यमदीप दान कहते हैं। यह दीप मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित होता है और इसे मृत्यु और रोगों से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
4. दीप जलाने की परंपरा : छोटी दिवाली पर लोग अपने घरों में दीप जलाते हैं। इसे बुराई का अंत करने और सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने का प्रतीक माना जाता है। दीप जलाने से न केवल घर का वातावरण पवित्र होता है, बल्कि मानसिक शांति भी मिलती है।
5. काली पूजा : पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित कुछ राज्यों में इस दिन देवी काली की पूजा का महत्व है। मान्यता है कि इस दिन देवी काली ने दुष्टों का संहार किया था, इसलिए इसे काली चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। लोग इस दिन देवी काली की पूजा-अर्चना करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं। काली पूजा में देवी के भयमुक्त और शक्तिशाली रूप की आराधना की जाती है।
6. बुराई का अंत : छोटी दिवाली के दिन लोग अपने घरों की विशेष सफाई करते हैं और पूरे वातावरण को शुद्ध करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सफाई और दीयों का प्रकाश नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त करता है और सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करता है।