आज का युवा रिश्तों (लिव इन रिलेशनशिप) को लेकर काफी अलग तरीके से सोच रहा है। जहां पहले प्रेम का अगला पड़ाव शादी ही माना जाता था, वहीं अब नई पीढ़ी रिश्तों को अपने तरीके से जीने की कोशिश कर रही है। बिना शादी साथ रहने की इस व्यवस्था को हम लिव-इन रिलेशनशिप के नाम से जानते हैं। पश्चिमी देशों से आया यह कॉन्सेप्ट अब भारत के शहरों में तेज़ी से घर बना रहा है। लिव-इन रिलेशनशिप का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी आज़ादी है। युवा मानते हैं कि शादी जैसे बंधन में बंधने से पहले साथी को अच्छी तरह समझना ज़रूरी है। साथ रहने से पार्टनर की आदतें, स्वभाव, गुस्सा और सोच को नज़दीक से देखा जा सकता है। यह अनुभव आगे चलकर रिश्ते की स्थिरता तय करने में मददगार होता है।
इसके अलावा, ऐसे रिश्तों में व्यक्तिगत स्पेस ज़्यादा रहता है। कपल आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र रहते हैं और घरेलू जिम्मेदारियां शेयर करते हैं। वहीं, अगर रिश्ता कामयाब न हो तो तलाक जैसी लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से बचते हुए आसानी से अलग हुआ जा सकता है।
फायदे
- एक-दूसरे को जानने का मौका
- आर्थिक स्वतंत्रता
- भावनात्मक निकटता
- तलाक से छूटकारा
नुकसान
हर रिश्ते की तरह लिव-इन भी चुनौतियों से अछूता नहीं है। सबसे बड़ा मुद्दा कमिटमेंट की कमी है। विवाह की तरह इसमें कोई कानूनी या सामाजिक बंधन नहीं होता, जिससे भरोसे की नींव हिल सकती है। रिश्ते टूटने पर मानसिक और भावनात्मक तनाव गहरा हो जाता है।
इसके अलावा, भारतीय समाज का रवैया भी बड़ा रुकावट है। शादी को जहां पवित्र बंधन और परिवारों के मिलन का प्रतीक माना जाता है, वहां बिना शादी साथ रहना अब भी बहुतों को गलत लगता है। छोटे शहरों और गांवों में इसे विद्रोह या असभ्यता तक करार दिया जाता है। यही वजह है कि लिव-इन कपल्स को अक्सर सामाजिक कलंक और आलोचना झेलनी पड़ती है।
कानूनी सुरक्षा भी सीमित है। संपत्ति और विरासत जैसे मामलों में लिव-इन पार्टनर को वैसी मजबूती नहीं मिलती जैसी शादीशुदा जोड़ों को मिलती है। सबसे पेचीदा सवाल बच्चों का है। भारतीय कानून और समाज अब तक इस व्यवस्था में जन्म लेने वाले बच्चों की स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं।
समाज की सोच
भारत में आज भी शादी को सिर्फ दो लोगों का नहीं बल्कि दो परिवारों का गठबंधन माना जाता है। यही वजह है कि लिव-इन को लेकर समाज दो हिस्सों में बंटा दिखता है। महानगरों में युवा इसे तेजी से अपनाते हैं, जबकि कस्बों और ग्रामीण इलाकों में लोग इसे सामाजिक अपराध की तरह देखते हैं। धीरे-धीरे बदलाव तो हो रहा है, लेकिन विरोध और हिचक अब भी गहरी है।
जानें कानून
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी दो वयस्कों की सहमति से साथ रहने को मान्यता दी है। इतना ही नहीं, घरेलू हिंसा कानून के तहत लिव-इन पार्टनर भी सुरक्षा और अधिकार पा सकते हैं।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





