लाल गुलाबी नीला, हर साबुन का झाग सफेद ही क्यों होता है

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट।  जब भी सफाई की बात आती है, पानी के साथ सबसे पहले साबुन (Soap) का जिक्र होता है। साबुन हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसके बिना हम सफाई की कल्पना भी नहीं कर सकते। आज बाजार में नहाने, कपड़े या बर्तन धोने के लिए हजारों वैरायटी के साबुन मौजूद है। खासकर नहाने वाले साबुनों में तो सैंकड़ों रंग, खुशबू और आकार प्रकार है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी रंग के साबुन का झाग सफेद (soap lather) ही क्यों होता है। गुलाबी साबु का झाग गुलाबी और नीले साबुन का झाग नीला क्यों नहीं होता।

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इस बात को समझने के लिए हमें स्कूल के दिनों को याद करना होगा। यहां हमने पढ़ा था कि प्रकाश जब किसी वस्तु पर पड़ता है तो वस्तु प्रकाश के कुछ रंगों का अवशोषण कर लेती है और कुछ रंगों को परावर्तित कर देती है। जिस रंग को वो परावर्तित करती है, वही रंग हमें दिखाई देता है। ऐसे में अगर कोई वस्तु सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है या सोख लेती है तो वो हमें काले रंग का दिखाई देता है लेकिन अगर वो सभी रंगों को उत्सर्जित कर देती है तो वो वस्तु हमे सफेद रंग की दिखाई देगी। अब इसे साबुन के झाग पर आज़माकर देखते हैं। साबुन का झाग कोई ठोस पदार्थ नहीं है, उसमें छोटे छोटे बुलबुले होते हैं। साबुन के एक बुलबुले में सूर्य की किरणें जाते ही अलग-अलग दिशा में रिफलेक्ट होने लगती हैं। मतलब ये एक दिशा में न जाकर अलग अलग दिखा में बिखर जाती है और इसी कारण बुलबुला पारदर्शी या सफेद दिखता है। साबुन के झाग से बनने वाले छोटे-छोटे बुलबुले सतरंगी ट्रांसपेरेंट फिल्म से बने होते हैं। इनपर जब प्रकाश की किरणें पड़ती है तो ये और सफेद दिखने लगते हैं।

अगर हम साबुन का इतिहास जानें तो पहले साबुन का आविष्कार 2800 BC में बबीलोनियंस द्वारा माना जाता है। इस बात का सबूत उस समय साबुन के लिए इस्तेमाल किए गए मिट्टी के बर्तन से मिलता है। उसपर साबुन को बनाने का तरीका भी लिखा गया था जिसके अनुसार जानवरों की चर्बी, राख और पानी को मिलकर साबुन बनाया जाता था। हालांकि तब इसका इस्तेमाल शरीर की सफाई के लिए नहीं बल्कि ऊन और कॉटन को साफ करने के लिए किया जाता था। इसके अलावा ये भी पता चला है कि प्राचीन मिस्रवासी नियमित रूप से नहाते थे।करीब 1500 ईसा पूर्व के एक चिकित्सा दस्तावेज एबर्स पेपिरस में रोचक उल्लेख मिलता है। यहां त्वचा रोगों के इलाज के साथ कुछ और उपयोग के लिए क्षारीय नमक के साथ पशु और वनस्पति तेलों के संयोजन से साबुन जैसी वस्तु बनाने का उल्लेख मिला है। कई अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी साबुन के उपयोग के प्रमाण मिले हैं। प्राचीन रोमन किंवदंती में साबुन को माउंट सपो के नाम से जाना जाता था। 7वीं शताब्दी तक स्पेन, फ्रांस और इटली में साबुन बनाना एक स्थापित कला थी। शुरुआत में जैतून के पेड़ों से तेल सहित कुछ और सामग्री मिलाकर साबुन बनाए जाते थे। तबसे लेकर आज तक सोप इंडस्ट्री में जमीन आसमान का अंतर आया है और आज बाजार में हजारों वैरायटी के साबुन मौजूद हैं।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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