Parenting Tips: जैसे-जैसे जमाना बदल रहा है। वैसे-वैसे पेरेंट्स की चिंता भी बढ़ रही है, कि उनका बच्चा बाकि बच्चों से पीछे ना रह जाए। इस कंपटीशन जमाने में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चे की समझदारी को भी डेवलप करना बेहद जरूरी है।
सभी माता-पिता को यह समझने की जरूरत है कि केवल परीक्षा में अच्छे नंबर लाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह जरूरी है कि बच्चों को पढ़ाई के अलावा अन्य चीजें भी अच्छे से समझाई जाए जैसे निर्णय लेना, समस्या सुलझाना, साथ ही साथ सामाजिक कौशल विकसित करने के लिए भी बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
समझदारी की शुरुआत बचपन से
कई बार माता-पिता सोचते हैं कि अभी बच्चा छोटा है इसलिए उसे सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए, जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी वैसे-वैसे समझदारी खुद ब खुद आती जाएगी।
इस बात में कोई शक नहीं है, लेकिन ऐसा सोचना हमेशा सही नहीं माना जाता है। हमें बच्चों को कम उम्र में ही छोटी-छोटी चीजें सिखाना शुरू करना चाहिए। ताकि, जब वे बड़े होकर इन चीजों की और देखें तो उन्हें ऐसा ना लगे कि उन्होंने आज तक ऐसा नहीं किया है।
मोबाइल से कहानियों की किताब की ओर
आजकल मोबाइल न सिर्फ बड़ों के लिए बल्कि बच्चों के लिए भी जरूरी बन गया है। अक्सर हम देखते हैं कि बच्चे मोबाइल पर रील्स या यूट्यूब शॉर्ट्स को स्क्रोल करते नजर आते हैं। बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ाने की बजाय आप उनके हाथ में कहानियों की किताबें पकड़ा सकते हैं।
साथ ही साथ आप उन्हें दादी-नानी की कहानी भी सुना सकते हैं। यह न केवल मनोरंजन का साधन होती है, बल्कि बच्चों के अंदर समझदारी विकसित करने के लिए भी अहम भूमिका निभाती है।
सुनाएं दादी-नानी की कहानियां
इस बात का ध्यान रखें की किताबों में लिखी हुई बातों को सिर्फ रटने से बच्चों की सोचने की क्षमता नहीं बढ़ती है। बल्कि उन्हें आप दादी-नानी की कहानी सुनाएंगे तो ऐसे में उन्हें नैतिक मूल्यों और जीवन के अनुभवों को समझने में मदद मिलेगी।
पहले के जमाने में बच्चे कम उम्र में ही काफी समझदार होते थे, क्योंकि वह अक्सर दादी-नानी की कहानी सुनते थे और वह कहानी काल्पनिक नहीं हुआ करती थी वह कहानी रियल लाइफ पर बेस्ड हुआ करती थी। ऐसे में बच्चों को रियल लाइफ से रूबरू होने में मदद मिलती है।
अपने बच्चों की चिंताओं को सुनें
हर माता-पिता को अपने बच्चों को परेशानियों से लड़ना ही सिखाना चाहिए। कई बार माता-पिता बच्चन की समस्याओं को नजअंदाज कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चा छोटा है इसलिए शायद वह कुछ भी बोल रहा है लेकिन ऐसा नहीं है आपको एक अच्छा श्रोता बनाकर अपने बच्चों की सभी चिताओं को अच्छे से सुनना चाहिए जिससे उन्हें यह महसूस हो कि आप उनके साथ हैं।
बच्चों को समस्या सुलझाने दें
लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप अपने बच्चों की समस्याओं को खुद सुलझाएं। आप उन्हें समस्या को सुलझाने के सुझाव दे सकते हैं। आप उन्हें सीखा सकते हैं कि किस परिस्थिति में किस तरह का काम किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने से सीख मिलेगी और वह जीवन में आने वाली तमाम बड़ी समस्याओं को भी सुलझाने में सक्षम होंगे।
बच्चों को जिम्मेदार बनाएं
अक्सर माता-पिता बच्चों को छोटा समझकर उन्हें जिम्मेदारियां देने से कतराते हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए बच्चों की परवरिश में छोटी-छोटी जिम्मेदारियां देना उन्हें समझदार और जिम्मेदार बनने में मदद करता है। जब आप बच्चों को छोटे-छोटे कामों में शामिल करते हैं तो उन्हें न केवल दूसरों का सहयोग करना सिखाते हैं बल्कि उनके अंदर जिम्मेदारी और आत्मनिर्भरता भी विकसित होती है।
बच्चों को बनाएं आत्मनिर्भर
ऐसा करना इसलिए भी फायदेमंद होता है, क्योंकि अगर आप बच्चों को छोटी उम्र से ही छोटी-छोटी जिम्मेदारियां देंगे तो जैसे-जैसे वह बड़ा होगा तो उसे बड़ी जिम्मेदारियां लेने में घबराहट नहीं होगी। उदाहरण के लिए हम समझते हैं कि आप बच्चों को समय पर उठने, सोने, पढ़ाई करने, साथ ही साथ नाश्ता, लंच और डिनर करने की जिम्मेदारी समझाएं। ऐसा करने से न सिर्फ बच्चों को अपने कामों को लेकर जागरुकता आएगी, बल्कि उन्हें खुद पर विश्वास भी होगा।