भूत चतुर्दशी का त्यौहार पश्चिम बंगाल में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार अक्सर लोगों के मन में कई सवाल खड़े करता है। दरअसल इसका नाम भूतों पर होने के कारण भी अक्सर लोग इसके बारे में जानने की इच्छा रखते हैं। कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर भूत चतुर्दशी कब और क्यों मनाई जाती है। बता दें कि बंगाल के अलावा इसे बाकी जगह नरक चतुर्दशी या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
दरअसल दिवाली के ठीक एक दिन पहले पश्चिम बंगाल में भूत चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है। हालांकि देश में बाकी राज्यों में इसे नरक चतुर्दशी या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन बंगाल में मनाया जाने वाला भूत चतुर्दशी का यह त्यौहार लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहता है।
भूत चतुर्दशी की रात को बुरी शक्तियां अधिक सक्रिय होती हैं?
जानकारी के मुताबिक पश्चिम बंगाल में मनाया जाने वाला यह त्यौहार काली पूजा के साथ जुड़ा हुआ है। हालांकि पौराणिक कथाओं की बात करें तो यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किए गए नरकासुर के संहार से संबंधित बताया जाता है। वहीं ऐसा माना जाता है कि भूत चतुर्दशी की रात को बुरी शक्तियां अधिक सक्रिय होती हैं। जिसके चलते लोगों में इसे लेकर डर भी देखा जा सकता है। वहीं इस दिन को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन आत्माएं अपने प्रियजनों से मिलने के लिए धरती पर आती हैं।
बच्चों को घर से अकेले बाहर नहीं जानें दिया जाता:
इसके साथ ही भूत चतुर्दशी के दिन बच्चों को घर से अकेले बाहर नहीं जानें दिया जाता है। दरअसल ऐसी मान्यता है कि भूत चतुर्दशी की रात तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए बच्चों का अपहरण किया जा सकता है। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है। इसके साथ ही भूत चतुर्दशी की रात घर के हर कोने में दीपक जलाया जाता है जिससे हर जगह रोशन हो सके, ऐसा माना जाता है कि इससे पूर्वजों की चौदह पीढ़ियों का सम्मान होता हैं।