कब साध लेनी चाहिए चुप, जानिए शास्त्रों के अनुसार किन स्थितियों में मौन रहना बेहतर है

हमने अक्सर अपने बड़ों से सुना है कि गुस्सा आए तो शांत रहना चाहिए। आवेश में कही गई बात बाद में आपको पछतावा दे सकती है। इस तरह की बातें वो अनमोल सीख हैं जो हमें जीवन का अनुशासन सिखाती हैं। अनुशासित व्यक्ति अपनी प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण रखता है। वह परिस्थितियों का शांत और विवेकपूर्ण तरीके से सामना करता है। हमारे यहां शास्त्रों में भी व्यवहार पर नियंत्रण रखने और समय-परिस्थितिनुसार निर्णय लेने का महत्व बताया गया है।

Shruty Kushwaha
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Importance of Silence in Indian Scriptures : भारतीय शास्त्रों में मौन को एक उच्च गुण और आत्मनियंत्रण का प्रतीक माना गया है। यह न सिर्फ विचारों को शुद्ध करता है, बल्कि आत्मचिंतन और विवेकपूर्ण निर्णय लेने में भी सहायक होता है। विभिन्न ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार, कई परिस्थियों में मौन रहने को कहा गया है।

हमारा व्यवहार हमारे स्वभाव और परिस्थितियों पर निर्भर होता है। कभी हम अपनी बात बोलकर व्यक्त करते हैं और कभी चुप रहकर। चुप रहना सिर्फ एक गुण नहीं है, बल्कि यह विवेक और आत्मसंयम का परिचायक है। शास्त्रों में यह बार-बार कहा गया है कि उचित समय पर मौन धारण करने से बड़े विवाद टाले जा सकते हैं और आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

जब जरूरी हो..चुप रहें

वो कौन सी परिस्थितियां हैं जब मौन रहना उचित होता है। हमारे जीवन में ऐसे कई पड़ाव आते हैं, जब कुछ बोलने से स्थितियां बिगड़ सकती हैं। ऐसे समय मौन रह जाना श्रेयस्कर है। आज हम जानेंगे कि हमारे यहां किन स्थितियों में मौन रहने की सीख दी गई है।

इन स्थितियों में मौन साधना बेहतर है

1. जब क्रोध में हों : महाभारत और गीता जैसे ग्रंथों में कहा गया है कि क्रोध में व्यक्ति सही और गलत का भेद भूल जाता है। क्रोध के समय बोले गए शब्द दूसरों को आहत कर सकते हैं और संबंधों में खटास पैदा कर सकते हैं।
उद्धरण: “क्रोध से मोह होता है, मोह से स्मृति भ्रंश, और स्मृति भ्रंश से बुद्धि का नाश।” (भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 63)

2. अज्ञानियों या मूर्खों के साथ विवाद के समय : शास्त्रों में कहा गया है कि मूर्ख व्यक्ति के साथ तर्क करना व्यर्थ है क्योंकि वह आपकी बातों को समझने के बजाय विवाद को और बढ़ा सकता है।
उद्धरण: “मूर्खेण सह विवादः न कर्तव्यः।” (नीति शास्त्र)

3. जब समस्या को समझने की आवश्यकता हो : किसी भी परिस्थिति का सही विश्लेषण करने और समाधान खोजने के लिए पहले स्थिति का अवलोकन और विचार करना चाहिए। अनावश्यक बोलने से गलत निर्णय हो सकता है।
उद्धरण: “मौनं सर्वार्थ साधनम्।” (मनुस्मृति)

4. जब किसी की भावनाएं आहत होने का डर हो : जब आप जानते हैं कि आपकी बात किसी को आहत कर सकती है, तो चुप रहना ही बेहतर है। रामचरितमानस में यह शिक्षा दी गई है कि वाणी से किसी का दिल दुखाना पाप है।

5. अधिकारियों, विद्वान और बड़े लोगों के सामने : शास्त्रों में कहा गया है कि जब कोई आपसे अधिक ज्ञानवान, बुद्धिमान या वरिष्ठ व्यक्ति बोल रहा हो तो विनम्रतापूर्वक चुप रहकर सुनना चाहिए।

6. आध्यात्मिक साधना या ध्यान के समय : योगसूत्र और उपनिषदों में मौन को साधना और आत्मचिंतन का मार्ग बताया गया है। मौन से व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करता है और मन की शांति हासिल करता है।

7. जब सच्चाई बोलना हानिकारक हो : यदि सत्य बोलने से किसी को अत्यधिक नुकसान या हानि हो सकती है, तो उसे मौन रखना श्रेयस्कर है। इसे हिंदू धर्म में “सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्” के रूप में समझाया गया है।

8. जब गुप्त बातें सामने आने का डर हो : चाणक्य नीति में कहा गया है कि गुप्त बातें या योजनाएं अनावश्यक रूप से प्रकट करना नुकसानदायक हो सकता है।
उद्धरण: “गोपनीयं कार्यं न प्रकाशयेत्।” (चाणक्य नीति)


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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