बच्चे की जिद पूरी न करना पिता को पड़ा महंगा, 16 वर्षीय बालक ने कीटनाशक पीकर की आत्महत्या

Gaurav Sharma
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होशंगाबाद/इटारसी, राहुल अग्रवाल। बच्चों की छोटी-छोटी जिद को माता-पिता हल्के में ले लेते है, जो कभी-कभी जिंदगी भर का पछतावा छोड़ जाती है। ऐसा ही एक मामला होशंगाबाद के इटारसी से सामने आया है, जहां एक दिव्यांग पिता के द्वारा अपने 16 वर्षीय बेटे को बाइक नहीं दिलाने पर नाबालिग ने कीटनाशक दवा पी कर उसने आत्महत्या कर ली। जिससे नाबालिग की मौत हो गई है।

ये है पूरी घटना

दरअसल होशंगाबाद जिले के इटारसी में रहने वाले दिव्यांग धनराज चौरे का 16 साल का बेटा कुछ दिनों से बाइक की जिद कर रहा था, लेकिन पिता उसके डिमांड को पूरा नहीं कर सके। इसी दौरान नाबालिग ने मजाक-मजाक में आकर कीटनाशक दवा पी कर उसने आत्महत्या कर ली। जिसके बाद परिजन नाबालिग को लेकर इटारसी के सरकारी सरकारी अस्पताल पहुंचे, जहां हालत गंभीर होने के कारण उसे नर्मदा अपना अस्पताल होशंगाबाद रेफर कर दिया गया, जहां नाबालिक ने अपना दम तोड़ दिया।

नाबालिग की हुई मौत

चिकित्सकों ने नाबालिग को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह बच नहीं सका। जिसके बाद आज शाम 5:30 बजे ग्राम पथरोटा से अंतिम संस्कार के लिए शांति धाम शमशान घाट गोकुल नगर खेड़ा इटारसी में अंतिम यात्रा निकाली गई। मृतक के भाई पीयूष चौरे ने मृतक को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया।

बच्चों की डिमांड पूरी नहीं करने के कारण ऐसी घटनाएं होती रहती है, जो पूरे देश के लिए एक समस्या का रूप लेती जा रही है। जहां माता-पिता अपने बच्चों को समझ नहीं पाते, साथ ही बच्चे भी गुस्से में ऐसे भनायक कदम उठा लेते है, जिसके कारण एक ही पल में पूरा परिवार तबाह हो जाता है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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