मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले में हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ था। इसमें साफ देखा जा सकता था कि किस तरह पुलिसकर्मी चालानी कार्रवाई के नाम पर अवैध वसूली कर रहे हैं। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस महकमें में हड़कंप मच गया। इस संबंध में जब जिला एसपी मनोज कुमार श्रीवास्तव ने भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए शर्मनाक बयान देकर अपना पल्ड़ा झाड़ लिया।
दरअसल, वीडियो वायरल होने के बाद आम जनता में आशा जगी थी कि दोषी पुलिस कर्मियों पर अब कोई ऐसी कार्यवाही देखने को मिलेगी जिससे अन्य कर्मचारी भी इस प्रकार से अवैध वसूली करने से हतोउत्साहित होंगे। पर हुआ इसके ठीक उलट जिले के पुलिस मुखिया ने इस वीडियो को गम्भीरता से लेने से ही इंकार कर दिया और वीडियो को एक साजिश बताते हुए एसपी ने पत्रकारों से इस मामले पर बात करने से मना कर दिया। उन्होंंने कहा कि ऐसे तो हर कोई आजकल वीडियो बना रहा है।
इस तरह के रवैये से एक बात तो साफ हो गई है, पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार श्रीवास्तव का आचरण अवैध वसूली कर रहे पुलिस कर्मियों का मनोबल बढ़ाने वाला है और इस रिश्वत खोरी के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों को हतोसहित करने वाला साबित हो रहा है। पुलिस अधीक्षक से बाईट लेने का प्रयास कर रहे एक पत्रकार द्वारा हिडन कैमरे से बनाए गए इस वीडियो में आप देख सकते है कि एसपी साहब पत्रकारों को बाईट ना देते हुए किस तरह से दोषी पुलिसकर्मियों को क्लीन चिट देने का प्रयास कर रहे है। यह वीडियो आगर के एक पत्रकार जो इस प्रकरण में एसपी की बाईट लेने गए थे उनके द्वारा खुफिया कैमरे से बनाया गया है अब जरा आप भी देखे और समझे कि जब किसी जिले के पुलिस मुखिया इस प्रकार के है तब वीडियो में दिखाई दे रहे ये पुलिस कर्मी किसके इशारे पर इस तरह की वसूली कर रहे होंगे इसको आसानी से समझा जा सकता है । हम आपको यह भी बता दे कि इसके कुछ दिनों पहले ही आर्म एक्ट के फर्जी 4 प्रकरणों बनाने के आरोप भी आगर मालवा जिले की पुलिस पर लग चुके है इस मामले में पुलिस द्वारा दबाव डाल कर फरियादी बनाए गए एक शख्स ने स्वयं कोर्ट में शपथ पत्र देकर इस फर्जी वाडे का खुलासा किया था ।
इस प्रकरण में आरोपी बनाए गए ढाबा संचालको का सिर्फ इतना दोष था कि उन्होंने पुलिस वालों को मुफ्त खाना खिलाने से और हफ्ता देने से मना कर दिया था । इस प्रकरण में मीडिया के माध्यम से मामला संज्ञान में आने के बाद भी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रकार की जांच करना उचित नहीं समझा गया है । उरोक्त दोनों घटनाक्रम जिले में पुलिस की छवि को खराब कर रहे हैं वहीं जिनकी जिम्मेदारी छवि सुधारने की है वो निश्चिंत होकर सिर्फ अच्छे अच्छे सरकारी आंकड़े ऊपर भेज कर खुश है और जो नीचे हो रहा है उसकी सुध लेने के लिए मानो कोई जिम्मेदार अधिकारी ही नही बचा है ।