भोपाल/नई दिल्ली। गुजरात के गोधरा में वर्ष 2002 में हुए भीषण दंगों के दौरान शारदापुरा में 31 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इस अग्निकांड से जुड़ी एक याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए गोधरा कांड के 17 आरोपितों को सशर्त जमानत दे दी है। अदालत ने शर्त यह रखी है कि जमानत के दौरान सभी आरोपितों को मध्यप्रदेश के इंदौर और जबलपुर में शहर में रहना होगा और यहां दो ग्रुप बनाकर समाज सेवा के कार्य करने होंगे।
गौरतलब है कि साल 2002 में गोधरा कांड के दौरान शारदापुरा में दंगे भडक़े थे, जिसमें 33 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इस मामले में पुलिस ने 31 लोगों को आरोपित बनाकर गुजरात हाईकोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। लम्बे समय तक गुजरात हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई, जिसमें हाईकोर्ट ने 14 आरोपितों को दोषमुक्त कराते देते हुए बरी कर दिया गया था, जबकि 17 आरोपितों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, तभी से ये सभी आरोपित गुजरात की जेल में बंद हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती थी।
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने सुनवाई करते हुए शारदापुरा दंगे के दोषी ठहराते सभी 17 आरोपितों को सशर्त जमानत मंजूर कर ली है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सभी आरोपित इंदौर और जबलपुर में रहकर एक हफ्ते में 6 घंटे सामुदायिक सेवा का काम करेंगे, साथ ही जमानत की शर्तों के अनुसार हर हफ्ते स्थानीय थाने में जाकर हाजिरी लगाएंगे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर और जबलपुर के जिला अधिकारियों के लिए आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि दोनों शहरों के अधिकारी सुनिश्चित करेंगे कि आरोपित जमानत की शर्तों का पालन कर रहे हैं या नहीं। अदालत ने जिला अधिकारियों ने तीन महीने में दोषियों के संबंधित कार्यों की रिपोर्ट मांगी है। अगर वे जमानत शर्तों का पालन नहीं करेंगे, तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी।