‘टाइगर’ की आत्मकथा…’13 बरस 23 दिन’ : सचिन चौधरी

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टाइगर की आत्मकथा…सचिन चौधरी

हम कौन.. नाम तो सुना ही होगा.. बोले तो टाइगर.. घुर्र. घुर्र

उमर 13 बरस 23 दिन .. यानि चौदहवें बरस का फुल्टूस घुटा हुआ टाइगर.. 

साल 2003 में एक गुस्सैल तेज तर्रार शेरनी और 2004 में एक बिना दांतों वाले शेर के राज के बाद जंगल में मेरी आमद हुई..  बचपन में हल्की फुल्की कद काठी के चलते जंगल के अन्य बड़े जानवर जैसे भालू, भेड़िया, लड़इया आदि ने मुझे भीगी बिल्ली समझा.. लेकिन मैं जंगल के कानून समझते हुए लोमड़ियों के साथ धीरे धीरे जंगल राज कायम करने में कामयाब हो गया.. एक तरफ मैंने जंगल के छोटे जानवरों पर प्यार बरसाया तो मुझे चुनौती देने वाले जानवरों का शिकार करने में कोई कोताही नहीं बरती .. समय के साथ लगातार दो पंचवर्षीय में मुझे ही जंगल का राजा चुना गया.. ऐसा नहीं है कि जंगल में सब कुछ शानदार था लेकिन जब भी मुझे ऊंची छलांग लगानी होती मैं दो कदम पीछे चला जाता..  इसी रणनीति के तहत जंगल में एकतरफा मेरा राज चला..

इसी बीच बगल के बड़े जंगल में शेर खान नाम के खूंखार बाघ ने दस्तक दी.. मेरे अपने कुनबे के भालू, बंदर, भेड़िया सब शेरखान के प्रभाव में आ गए और उसके सानिध्य में मेरे जंगलराज पर कब्जा करने का प्रयत्न करने लगे.. वे अपने लिए तो कुछ हासिल न कर पाए .. लेकिन मौका पाकर अन्य विरोधियों ने मुझसे मेरा जंगल और मेरा राज सब कुछ छीन लिया.. 

इसी बीच 13-14 बरस गुजर चुके थे.. अब यह टाइगर चुक चुका है.. जंगल के राजा से वन विहार के एक छोटे से बाड़े में कैद है.. 

कहने को तो इस बाड़े में पूर्व राजा की सारी सुख सुविधायें हैं.. 

लेकिन जंगल जंगल होता है साहब.. जितना यहां मेरा बाड़ा है उतना तो जंगल में मेरा बाथरूम हुआ करता था.. खैर,,  अब यह मुझे भी मालूम है कि मेरा दोबारा जंगल का राजा बनना मुश्किल है.. लेकिन बीते 13-14 सालों में मेरे अंदर जो राजापना रच बस गया है, सुबह शाम लोमड़ियों की जी हुजूरी की आदत लग गई है उससे कैसे पीछा छुड़ाऊं…

सो एक नया तरीका निकाला है.. आजकल मैं,,  हिरन यानि ए कॉमन एनिमल ऑफ जंगल के भेष में निकलता हूँ.. ताकि आम जंगल प्राणियों के बीच रच बस सकूं, उन  लोमड़ियों की पहचान कर सकूं जो मेरा राज जाते ही विरोधियों से मिल गए..

दिल से बताऊं तो मुझे भी पता है कि मेरी वापसी फिर से मेरे जंगल में शायद संभव न हो ..लेकिन अगर इस वन विहार के बाड़े को यूं चुपचाप स्वीकार कर लिया तो फिर मेरे ही पूर्व साथी जानवर मुझे सर्कस भेजने में देर न करेंगे.. इसीलिए बुरे वक्त में खुद को समझाने और सबको भभकी देने के लिए ही कभी कभी शीशे के सामने घुर्रा देता हूँ और अपनी ही परछाई से कह देता हूँ.. कि..   “टाइगर जिंदा है ” 

(टाइगर की आत्मकथा…सचिन चौधरी संपादक बुंदेली बौछार )


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