भोपाल| लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा के बाद भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है| कई सीटों पर मुकाबला तय हो गया है| कुछ सीटों पर ऐलान बाकी है| इनमे तीन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां एक बार फिर वही चेहरे आमने सामने हैं| तीन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों के लिए बदले का चुनाव है| पिछली बार हारने वाले कांग्रेस के तीनों प्रत्याशियों को हिसाब बराबर करने का मौका मिला है। 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने तीनों सीटें जीती थी, लेकिन अब समीकरण कुछ अलग हैं।
नंदू भैया का अरुण यादव से मुकाबला
खंडवा सीट पर एक बार फिर बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और पूर्व सांसद अरुण यादव आमने-सामने हैं। 2009 में अरुण यादव जब खरगोन सीट छोड़कर यहां आए थे तो नंदकुमार सिंह को हरा दिया था। फिर 2014 में नंदकुमार ने मोदी लहर पर सवार होकर अरुण को पटकनी देकर हिसाब बराबर कर लिया। अब वापस अरुण के पास हिसाब बराबर करने का मौका है। स्थानीय समीकरण ऐसे हैं कि दोनों नेताओं को भितरघात का खौफ सता रहा है। अरुण के लिए कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा सिरदर्द बने हैं तो दूसरी ओर नंदकुमार के लिए उनकी ही पार्टी की पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस की नाराजगी आशंका उत्पन्न कर रही है।
विवेक तन्खा और राकेश सिंह फिर आमने सामने
जबलपुर सीट पर पिछली बार के प्रतिद्वंदी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व सांसद राकेश सिंह और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के बीच टक्कर है। 1996 से यह सीट भाजपा और 2004 से राकेश सिंह के पास है। पिछली बार विवेक 2 लाख 8639 वोटों से हारे थे। यह सीट भाजपा का गढ़ है। विवेक का करीब दो साल का राज्यसभा सांसद का कार्यकाल बचा है, इसलिए पहले वे चुनाव लडऩे को सहमत नहीं थे, लेकिन कठिन सीट पर चुनौती की रणनीति के तहत वे हिसाब बराबर करने उतरे हैं। तीन बार के सांसद राकेश के सामने एंटी इन्कम्बेंसी बढ़ा फैक्टर है, लेकिन संगठन पर पकड़ उनकी ताकत भी है।
मीनाक्षी नटराजन का सुधीर गुप्ता से सामना
मोदी लहर में मीनाक्षी नटराजन ने मंदसौर सीट गंवा दी थी। इसलिए यहां भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता से हिसाब बराबर करने के लिए मीनाक्षी दिन-रात चुनाव में जुटी हैं। 1989 से 2004 तक इस सीट पर भाजपा काबिज थी, लेकिन 2009 में मीनाक्षी ने यह सीट भाजपा से जीत ली थी। इसके बाद 2014 में सुधीर गुप्ता ने मीनाक्षी को हरा दिया। मीनाक्षी की हार 3 लाख 3649 वोटों से हुई थी। मीनाक्षी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के कोर-गु्रप में मानी जाती हैं, जबकि सुधीर गुप्ता भाजपा नेता के पहले संघ के चेहरे थे। मंदसौर की पूरी चुनावी बिसात भी हिसाब बराबर करने की रणनीति पर बिछी है। इलाके में मीनाक्षी को भितरघात का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन ऐसी ही स्थिति सुधीर गुप्ता के साथ भी है|