भोपाल। सॉफ्ट हिन्दुत्व की तरफ कदम बढ़ाती कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं को एक बार फिर दिरकिनार कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। चुनाव के दौरान 80 फीसदी से ज्यादा वोटों की अपेक्षा रखे जाने वाले समुदाय के किसी व्यक्ति को कांग्रेस ने जिला समितियों के लायक भी नहीं माना है। प्रदेशभर की करीब 18 लोगों की सूची में किसी मुस्लिम को शामिल न करने का आलम यह है कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों तक में इस कौम को प्रतिनिधित्व देने की जहमत कांग्रेस ने नहीं उठाई है।
एक साल से ज्यादा समय पूरा कर चुकी प्रदेश की कांग्रेस सरकार अपने नए आचरण में मुस्लिम समुदाय से दूरी बनाती नजर आने लगी है। प्रदेश संगठन से लेकर जिला कमेटियों तक में इस समुदाय को हाशिये पर बैठाकर अपनी मंशा जाहिर कर चुकी कांग्रेस ने अब जिला योजना समितियों के लिए भी किसी मुस्लिम चेहरे को मौका नहीं दिया है। राजधानी सहित करीब 18 जिलों के पदाधिकारियों के नाम घोषित करने के दौरान इस बात का ख्याल नहीं रखा गया है कि जिस समाज से कांग्रेस को 80 फीसदी से ज्यादा वोटों की अपेक्षा रहती है, उसके किसी नुमाइंदे को किसी छोटी जिम्मेदारी से नवाज दिया जाता। इससे पहले भी कांग्रेस अपना यह रुख दिल्ली से लेकर भोपाल तक दिखा चुकी है, लेकिन किसी तीसरे विकल्प के बिना अपनी जमीन तलाशती इस कौम के लोगों की मजबूरी ही कही जा सकती है कि अंतत: उसके हाथ, पंजे को मजबूत करने के लिए ही उठ जाते हैं।
मुस्लिम बाहुल्य जिलों में भी दरकिनार
जिला योजना समिति के लिए प्रारंभिक तौर पर षोषित की गई करीब 18 जिलों की सूचि में भोपाल, बैतूल, रतलाम, विदिशा, उज्जैन सहित कई ऐसे जिले भी शामिल हैं, जहां मुस्लिम आबादी बहुतायत में मौजूद है। इसके बावजूद भी इन जिलों पर किसी मुस्लिम चेहरे को जगह नहीं दी गई है। इन स्थानों से घोषित किए गए नाम भी इस बात की दलील नहीं हैं कि वे नाम किसी मुस्लिम चेहरे से ज्यादा योग्य या पार्टी के लिए उनसे ज्यादा वफादार हैं।
मेहरबानियों का यह सिलसिला क्यों
राजधानी भोपाल से इस समिति में डॉ. महेन्द्र सिंह चौहान का नाम घोषित किया गया है। जिस चुनाव क्षेत्र से वे ताल्लुक रखते हैं, उस विधानसभा में भोपाल की सबसे ज्यादा करीब 48 प्रतिशत मुस्लिम आबादी मौजूद है। इसके अलावा यहां की दो अन्य विधानसभा मध्य और उत्तर भी मुस्लिम बाहुल्य हैं और इन दोनों सीटों से कांग्रेस विधायक चुनकर आए हैं। डॉ. चौहान को पार्टी दो बार चुनावी टिकट से नवाज चुकी है, जबकि पूर्व में वे नेहरू युवा केन्द्र से भी जुड़े रहे हैं। बार-बार की हार और लगातार उपकार को देखकर जहां मुस्लिम कांग्रेसियों को निराशा हाथ लगी है, वहीं पार्टी की एक तरफा मेहरबानियों से वे नाराज भी होने लगे हैं।
मुस्लिम इदारों तक सीमित
भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस ने भी मुस्लिम नेताओं और कार्यकर्ताओं को महज मुस्लिम इदारों तक ही सीमित कर दिया है। पार्टी की मुख्यधारा में किसी सम्मानित पद से नवाजने की बजाए इन्हें महज अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ और मुस्लिम इदारों में ही खपाया जा रहा है। भाजपा के पास मुस्लिम कार्यकर्ताओं की छोटी तादाद के बावजूद भी उसने अपने कार्यकाल में अधिकांश मुस्लिम इदारों को समय पर पदाधिकारी सौंपकर अपने मुस्लिम कार्यकर्ताओं को समायोजित कर दिया था। लेकिन एक साल का समय गुजर जाने के बाद भी कांग्रेस मुस्लिम इदारों में नियुक्तियां ही नहीं कर पाई है। जिसका नतीजा यह है कि मप्र वक्फ बोर्ड, मप्र वित्त विकास निगम, मप्र मदरसा बोर्ड जैसी अहम संस्थाएं बिना पदाधिकारी ही काम चला रही हैं। प्रदेश हज कमेटी और मप्र उर्दू अकादमी में नियुक्ति के बावजूद इसके बाकी सदस्यों और पदाधिकारियों के नाम फिलहाल रुके हुए हैं।
गुफरान ने उठाया था एतराज
कांग्रेस के एक कार्यक्रम के लिए दिल्ली से तैयार किए गए हॉर्डिंंग में किसी मुस्लिम नेता की तस्वीर न होने पर मरहूम गुफरान-ए-आजम ने आवाज उठाई थी। उन्होंने अपनी बात प्रदेश संगठन से लेकर दिल्ली तक पहुंचाई थी। इसका असर यह हुआ था कि बाद में पार्टी को संशोधित हॉर्डिंग्स तैयार करवा कर उसमें मुस्लिम नेताओं और महापुरुषों के नाम और तस्वीर शामिल करना पड़ी थी।