भोपाल। पंद्रहवीं विधानसभा में इस बार कई दिग्गज विदा हुए तो कई नई चेहरों की एंट्री हुई है। इस बार विधानसभा में 90 नए विधायक विधानसभा की सीढ़ी चढ़ेंगे। हालांकि, इस बार 14 वीं विधनसभा की तुलना में नए चेहरों में कमी आई है। पिछली बार 114 विधायक पहली बार चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। इस बार कांग्रेस के 60 और सत्ता खोकर विपक्ष में बैठने वाली बीजेपी के 29 विधायक शामिल होंगें, जो पहली बार निर्वाचित होकर सदन में आएंगें। पहली बार अपने राजनीतिक करियर में विधानसभा चुनाव जीतने वाले इन विधायकों की भूमिका काफी अहम होने वाली है।
अगर 2013 की बात करे तो इसमें गठित 14वीं विधानसभा में 113 विधायक ऐसे थे, जो पहली बार चुनकर आए थे। इनमें सर्वाधिक 64 भाजपा, 43 कांग्रेस, 2 निर्दलीय और 4 बसपा के थे।वही 2008 में गठित 13वीं विधानसभा में 108 विधायक पहली बार जीतकर आए थे, इनमें 15 महिलाएं थी।इस बार विधायकों की संख्या में कमी आई है।
इसके अलावा 14वीं विधानसभा में आरक्षित कोटे की 60 सीटें भाजपा के पास थीं। जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ 20 सीटें ही थीं। 2 सीटें बसपा के पास थीं। वही 2018 में आरक्षित वर्ग की 47 सीटें कांग्रेस के पास हैं और भाजपा के खेमे में सिर्फ 34 सीटें रह गई हैं। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 में से 30 कांग्रेस ने जीती हैं, जबकि 2013 में सिर्फ 15 ही उसके पास थीं।
15 वीं विधानसभा में ज्यादा ग्रेजुएट विधायक
मध्य प्रदेश की 15वीं विधानसभा के लिए चुने गए नए विधायक, 14वीं विधानसभा की तुलना में ज्यादा शिक्षित हैं। 15वीं विधानसभा में 56 विधायक ग्रैजुएट और इतने ही पोस्ट ग्रैजुएट हैं। खास बात यह है कि 230 विधायकों में से सिर्फ तीन के पास डॉक्टरेट की डिग्री है। दतिया से नरोत्तम मिश्रा, अटेर से अरविंद सिंह भदौरिया और उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव के पास डॉक्टरेट की उपाधि है। यह तीनों बीजेपी से विधायक हैं। हालांकि एक दूसरा पहलू यह है कि इनमें से एक दर्जन ऐसे विधायक भी हैं जो या तो सिर्फ साक्षर हैं या प्राइमरी (5वीं) पास हैं। इसके साथ ही सात विधायक मिडिल स्कूल (8वीं) और 13 विधायक दसवीं पास हैं। कुल 230 विधायकों में से नए चुने गए 37 विधायक 12वीं तक की शिक्षा ही हासिल कर सके हैं।