भोपाल। दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। इससे पहले भी पार्टी एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में हार का मज़ा चख चुकी है। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी काफी टूटा है। अब एक और अग्नीपरीक्षा भाजपा के सामने है। प्रदेश की दो विधानसभाओं आगर और जौरा में उप चुनाव होना है। इन दोनों सीटों में से एक पर त्रिकोणीय मुकाबला है। वहीं, इन सीटों पर हार जीत भाजपा की दिशा दशा भी तय करेगी। कांग्रेस भी इन सीटों पर जीत के लिए ताकत झोंक रही है। वह अपने दम पर बहुमत हासिल करना चाहती है। वहीं, कांग्रेस को कमज़ोर करने के लिए भाजपा भी जीत की रणनीति बना रही है।
आगर सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी
आगर सीट को भाजपा की परंपरागत सीट माना जाता है। लेकिन जौरा सीट पर भाजपा के लिए जीत मुश्किल है। यह सीट कांग्रेस के कब्जे में थी। लेकिन इस सीट पर भाजपा सांसद और केंद्रयी मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। तोमर का संसदीय क्षेत्र मुरैना है, इस नाते उनके क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीट जिताने के लिए वे भी एढ़ी-चोटी का जोर लगाएंगे। भाजपा छिंदवाड़ा और झाबुआ में हुए दो उपचुनाव हार चुकी है।
जौरा में त्रिकोणीय मुकाबला
जौरा में कांग्रेस, भाजपा और बसपा के बीच कड़ी टक्कर मानी जा रही है। यहां 2013 में भाजपा के सूबेदार सिंह रजौधा ने विधानसभा चुनाव जीता था। इसके बाद 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस के बनवारीलाल शर्मा ने भाजपा से यह सीट छीन ली।
ऐसा कहा जाता है कि सूबेदार सिंह की बदौलत भाजपा 2013 में आजादी के बाद पहली बार चुनाव जीती थी। 2008 में यहां से मनीराम धाकड़ विधायक भी रहे, 2013 में उन्हें 30 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। पिछले साल 2018 में भी बसपा के मनीराम दूसरे नंबर पर रहे जबकि भाजपा के रजौधा तीसरे नंबर पर रहे थे। यहां ब्राह्मण, धाकड़, क्षत्रीय व कुशवाह समुदाय है। मुस्लिम वोट यहां काफी प्रभावशाली है।